ध्यान की अनुभूति



ध्यान क्या है?
न कोई कर्म, न कोई प्रयास,
जैसे बहारों में कोई वास।
प्रेम की तरह, सहज बहाव,
जहां रुक जाए समय का भाव।

कोई करने की बात नहीं,
सिर्फ होने की शुरुआत सही।
जहां विचार थम जाएं,
मन का मृदंग मौन गाए।

यह एक गहरी झील-सी शांति है,
न अतीत की छाया, न भविष्य की भ्रांति है।
सांसों की लय में लयबद्ध हो जाना,
अपने ही भीतर, बस खो जाना।

ध्यान में बंधन टूट जाते हैं,
स्वयं से स्वयं तक हम आ जाते हैं।
न कोई छवि, न कोई परछाई,
बस सत्य का अनुभव, सबसे निराई।

ध्यान वही है जहां "मैं" खो जाए,
एकता की लहर, सब मिट जाए।
तुम भी हो, और कुछ भी नहीं,
ध्यान की अनुभूति—सर्वस्व यहीं।


अपनी क्षमता को व्यर्थ न जाने दो

क्यों रुकूं मैं, जब राहें बुला रही हैं, क्यों थमूं मैं, जब हवाएं गा रही हैं। यह डर, यह संशय, यह झूठा बहाना, इनसे नहीं बनता किसी का जमाना। आध...