3. Baar-baar Iccha – Ek Prakritik Aag (Repeated desire)
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क्यों बार-बार मन ये बोले,
"एक बार और…", फिर भी न खोले।
ये कौन सी प्यास है अधूरी,
जो बुझते ही और जलती है पूरी।

क्या ये बस वासना की रेखा है?
या कोई अंदर का सूना हिस्सा है?
शायद देह नहीं, आत्मा भी पुकारती है,
सिर्फ स्पर्श नहीं, अपनापन भी चाहती है।_

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