जनेऊ: धार्मिक एवं सांस्कृतिक परम्परा का प्रतीक



जनेऊ, जिसे तीन पुत्री धारण किया जाता है, हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण धार्मिक प्रथा है। इसे वेदों की शिक्षा प्राप्त करने वाले बच्चों को प्रदान किया जाता है। जनेऊ का उद्घाटन संस्कृति, सांस्कृतिक परंपरा, और आध्यात्मिकता के महत्व को प्रकट करता है।

#### जनेऊ का महत्व

1. **वेदिक शिक्षा का प्रतीक**: जनेऊ विद्यार्थी को वेदों की शिक्षा ग्रहण करने के लिए तैयार करता है। इसका धारण बच्चे के जीवन में धार्मिकता और आध्यात्मिकता की महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
2. **त्रिमूर्ति का प्रतीक**: जनेऊ में तीन गाँठ होती हैं, जो भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु, और भगवान शिव का प्रतीक होती हैं। यह धारण करने वाले को त्रिमूर्ति की कृपा और आशीर्वाद को प्राप्त करने का संकेत देती है।
3. **धार्मिक नियमों का पालन**: जनेऊ धारण करने वाले को धार्मिक नियमों और मूल्यों का पालन करने के लिए प्रेरित करता है। इसे धारण करने वाले को अपनी शिक्षा का सही उपयोग करने और मिथ्या कार्यों से बचने के लिए प्रेरित करता है।

#### जनेऊ का धारण

जनेऊ का धारण संस्कारिक और आध्यात्मिक घटना होती है, जो बच्चे के जीवन की महत्वपूर्ण मील का पत्थर होती है। इसे विशेष धार्मिक अनुष्ठानों के साथ किया जाता है और इसका धारण उचित धार्मिक पंथ के अनुसार किया जाता है।

#### जनेऊ के परम्परागत महत्व

जनेऊ एक प्राचीन परंपरा का प्रतीक है जो हमें हमारी संस्कृति और धर्म की महत्वपूर्णता को याद दिलाता है। यह धारण विद्यार्थी को धार्मिक जीवन के मूल्यों और नीतियों की महत्वता को समझाता है और उसे सही दिशा में चलने के लिए प्रेरित करता है। जनेऊ का परंपरागत महत्व हमें हमारे धार्मिक और सांस्कृतिक रूपरेखा को समझने और सम्मान करने के लिए प्रेरित करता है।

ध्यान की अनुभूति



ध्यान कोई क्रिया नहीं,
यह तो एक अनुभूति है।
जैसे प्रेम में डूबना,
वैसे ही इसमें डूबना है।

न कोई प्रयास, न कोई चाह,
बस शून्यता का आभास।
जहां विचार शांत हों,
वहां आत्मा का निवास।

न यह करने की वस्तु है,
न यह पाने की लालसा।
यह तो एक मौन यात्रा है,
स्वयं तक पहुंचने की प्यास।

जहां समय थम जाता है,
जहां अस्तित्व खो जाता है।
वहीं ध्यान है, वहीं प्रेम है,
वहीं सत्य प्रकट हो जाता है।

तो छोड़ दो सब चाहतें,
बस बहो इस प्रवाह में।
ध्यान है स्वयं का संगम,
शून्य में मिलन इस राह में।


अपनी क्षमता को व्यर्थ न जाने दो

क्यों रुकूं मैं, जब राहें बुला रही हैं, क्यों थमूं मैं, जब हवाएं गा रही हैं। यह डर, यह संशय, यह झूठा बहाना, इनसे नहीं बनता किसी का जमाना। आध...