ध्यान की अनुभूति



ध्यान कोई क्रिया नहीं,
यह तो एक अनुभूति है।
जैसे प्रेम में डूबना,
वैसे ही इसमें डूबना है।

न कोई प्रयास, न कोई चाह,
बस शून्यता का आभास।
जहां विचार शांत हों,
वहां आत्मा का निवास।

न यह करने की वस्तु है,
न यह पाने की लालसा।
यह तो एक मौन यात्रा है,
स्वयं तक पहुंचने की प्यास।

जहां समय थम जाता है,
जहां अस्तित्व खो जाता है।
वहीं ध्यान है, वहीं प्रेम है,
वहीं सत्य प्रकट हो जाता है।

तो छोड़ दो सब चाहतें,
बस बहो इस प्रवाह में।
ध्यान है स्वयं का संगम,
शून्य में मिलन इस राह में।


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