चल पड़े हैं, नयी राहों में,

चल पड़े हैं, नयी राहों में, अंधेरी राहों में,
रात के मुसाफिर हम, जाते हैं सोते हैं ना जाते हैं।

हर पल उधम मचाते हैं, हो क्या गया है हमने,
लेकिन कुछ भी कहो, नया जिंदगी है नहीं रहा है।

नई सर्दी की ठंड, नया सफर, नहीं रहा है बस,
दर्द राहों में हम, कट रहे हैं, इन सब में बस।

जड़ना खत्म हो जाए, बस इसी तरह, चल रहा है,
नया और पुराना, एक साथ, इस जीवन का संगम बन रहा है।

ये बहुत ही बढ़िया है, ये संगम इस जीवन का,
अंधेरे में भी उजाला, हर रात, हर पल, हर वक्त का।

अपनी क्षमता को व्यर्थ न जाने दो

क्यों रुकूं मैं, जब राहें बुला रही हैं, क्यों थमूं मैं, जब हवाएं गा रही हैं। यह डर, यह संशय, यह झूठा बहाना, इनसे नहीं बनता किसी का जमाना। आध...