सृष्टि: एक दिव्यता का अभिव्यक्ति**

**सृष्टि: एक दिव्यता का अभिव्यक्ति**

वेदों और उपनिषदों के माध्यम से हमें सृष्टि का विश्वासघाती स्वरूप प्राप्त होता है। यहाँ हर वस्तु को एक दिव्य स्वरूप में देखा जाता है, जिससे हमें अनिष्टरूप विभाजन का अभाव महसूस होता है। 

**"वसुधैव कुटुम्बकम्"** - यह संस्कृत श्लोक हमें विश्व की एकता का सन्देश देता है। इसका अर्थ है - संपूर्ण विश्व एक परिवार है। इसमें कोई भेदभाव नहीं होता, सभी जीव एक ही परम परमात्मा के अंश हैं। 

**भगवद्गीता का एक श्लोक** भी हमें समग्रता की ओर इशारा करता है - 
"अन्तवन्त इमे देहा नित्यस्योक्ताः शरीरिणः।
अनाशिनोऽप्रमेयस्य तस्माद्युध्यस्व भारत।।" (भगवद्गीता 2.18)

इस श्लोक में श्री कृष्ण अर्जुन को समग्र अंतिमत वास्तविकता की ओर प्रेरित करते हैं। उनका कहना है कि ये शरीर अनादि हैं, इसका अंत नहीं है, और वे अविनाशी हैं। इसलिए, अर्जुन, तुम युद्ध के लिए तैयार हो जाओ। 

भारतीय संस्कृति में, प्रकृति को देवता का रूप माना जाता है और इसलिए उसका सम्मान किया जाता है। हमें अपने पर्यावरण का सम्मान करना और संरक्षित करना चाहिए, क्योंकि यह हमारी संबलिता और आत्मरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है। 

आजकल, पर्यावरण संरक्षण की ओर हमारी दिशा को बदलने की आवश्यकता है। हमें सृष्टि की एकता और समग्रता का आदर्श मानना चाहिए और प्राणी-प्राणियों के बीच अहंकार और अभिभावक भावना को हटाना चाहिए। 

**सृष्टि की यह दिव्यता हमें समग्र एकता का अनुभव कराती है, जिसमें हर जीवन एक महत्वपूर्ण अंश है, और उसका सम्मान करना आवश्यक है।**

अपनी क्षमता को व्यर्थ न जाने दो

क्यों रुकूं मैं, जब राहें बुला रही हैं, क्यों थमूं मैं, जब हवाएं गा रही हैं। यह डर, यह संशय, यह झूठा बहाना, इनसे नहीं बनता किसी का जमाना। आध...