पुस्तकों में नहीं छिपा है, ज्ञान का महासागर,
निःशब्द स्वयम् में बहती है, बुद्धि का सच्चा गागर।
नित मौन में गूंजती, ब्रह्म की गहन वाणी,
जिसे सुन सके वो आत्मा, बने अनंत की कहानी।
योग है जो जोड़ता है, आत्मा को परमात्मा से,
ध्यान की गहराई में, खुलते द्वार सत्य के।
हर क्षण है गुरु-तत्त्व, हर अनुभव है पाठ,
प्रकृति का हर अणु कहता, अनंतता का साथ।
देखो वृक्षों की शाखाओं को, संदेश छिपा है गहन,
जड़ों से जुड़े रहो, पर आसमान छूने का हो जतन।
नदियों की कलकल में है, जीवन का अद्भुत राग,
जो बहा सके स्वयं को, वही समझे ब्रह्म का भाग।
शांत हो जाओ, मौन से पूछो, उत्तर हर सवाल का,
अंतर की आत्मचेतना है, स्त्रोत हर ज्ञान का।
न भटको बाहरी माया में, न बांधो स्वयं को मिथ्या में,
जो पा सके स्वयं का सत्य, वही समर्पित है सत्य में।
गुरु-पूर्णिमा का स्मरण करो, हर तत्त्व गुरु का रूप,
हर दिन, हर क्षण, हर अनुभव, है ज्ञान का अनूप।
तुम्हारा अस्तित्व ही शिव है, तुम्हारी श्वास ही शक्ति,
अपने भीतर के ब्रह्मांड को देखो, वहीं है मोक्ष की भक्ति।
संदेश यह है सरल सा, ब्रह्मांड ही है शिक्षक,
हर अनुभूति, हर सीख, है जीवन का आधार।
मौन की शक्ति समझो, आत्मा की गहराई,
वहीं मिलेगा वो ज्ञान, जो हर मुक्ति दिलाए।