दिल की पहरेदारी


पहले प्रेम मेरा आश्रय था,
एक शुद्ध लहर, जो मुझे बहा ले जाती थी।
मैंने उसमें डूबना चाहा,
यह सोचकर कि यह मुझे बचा लेगा।

पर जब प्रेम टूटा,
तो मैं भी बिखर गया।
हर वादा अधूरा रह गया,
हर सपना किरचों में बदल गया।

अब मेरा दिल पहले जैसा नहीं,
अब मैं उसे सीने में छुपाकर रखता हूँ।
मैंने उसके चारों ओर दीवारें खड़ी कर दी हैं,
हर स्पर्श को परखता हूँ, हर शब्द को तौलता हूँ।

मुझे डर है कि अगर फिर से कोमल हुआ,
तो फिर से वही दर्द सहना पड़ेगा।
पर कहीं भीतर एक आवाज़ कहती है—
प्रेम खोया नहीं, वह बस और गहरा हुआ है।

शायद एक दिन मैं फिर से खोलूंगा अपने द्वार,
पर इस बार आँखें मूंदकर नहीं,
इस बार अपनी कोमलता को सही हाथों में सौंपकर।