क्या रंग है तुम्हारी सांस का?
आँखें मूंदो और सोचो।
शायद वह श्वेत हो,
जैसे हिमालय की बर्फ।
या हरा,
जैसे घास का मैदान।
शायद नीला,
जैसे आकाश का अंतहीन विस्तार।
या लाल,
जैसे जीवन की धड़कन।
यह सांस कहाँ से आती है?
किस स्त्रोत से,
किस गहराई से उठती है?
क्या वह धरती के गर्भ से,
या आकाश के आँगन से उतरती है?
क्या यह ईश्वर की छाया है,
या प्रकृति का वरदान?
और यह कहाँ जाती है?
क्या खो जाती है
क्षितिज के पार?
या समा जाती है
अनंत के आँचल में?
क्या इसका कोई अंत है,
या यह चक्र बनाकर लौटती है?
हर सांस के रंग में छिपा है
एक रहस्य, एक सन्देश।
एक प्रश्न जो पूछता है:
क्या तुमने अपने भीतर
उस रंग को देखा है?