अंतराल



जो भी है हमारे दिन में, वह हम बनाते हैं,
कभी काम, कभी आराम, कभी शांति से बिताते हैं।
लेकिन असली खेल होता है, बीच के खाली पलों में,
वो वही अंतराल हैं, जो काम को बनाते हैं नये रंगों में।

जब हम चलते हैं एक काम से दूसरे तक,
उस छोटी सी दूरी को बढ़ाना है हमें, जैसे नया तरीका हो पक।
चाहे हो कुछ भी, बीच का वक्त हो सबसे खास,
यह वह जगह है जहां पर उत्पादकता को मिलता है बास।

कभी-कभी दिमाग को आराम दो, फिर रचनात्मकता को पाओ,
वो छोटे-छोटे पल, जब कुछ न करें, यही सबसे ज़रूरी है जानो।
बीच का अंतराल, इसे मैक्सिमाइज करना,
यही है असली सफलता, और यही हमारा तरीका बनाना।

कभी भागे, कभी रुके, सोचें, खुद को समझें,
इन अंतरालों से ही हम असल में ऊंचाईयों तक पहुंचें।
काम से आराम तक, आराम से फिर काम,
इस संतुलन में ही है असली उत्पादकता का पैमाना।


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