कहते हैं,
तनाव कोई मज़ाक नहीं,
ये हँसते हुए चेहरे के पीछे
धीरे-धीरे शरीर को खोखला कर देता है।
मैंने महसूस किया—
जब मन भारी होता है,
तो बदन भी थकने लगता है,
साँसें बेचैन हो जाती हैं,
नींद रूठ जाती है,
और हर दर्द
जैसे दिल से उठकर हड्डियों तक चला जाता है।
तनाव—
केवल सोच नहीं,
एक चुपचाप आता हुआ रोग है,
जो रक्तचाप से लेकर मधुमेह तक
सब कुछ आमंत्रित कर लेता है।
अब मैं जान चुका हूँ—
अगर मन को न सुलझाया,
तो शरीर भी उलझ जाएगा।
इसलिए मैं
हर उस बात को छोड़ देता हूँ
जो चैन छीनती है।
अब मैं
शांति को पकड़ता हूँ
और तनाव को जाने देता हूँ...
क्योंकि ज़िंदगी
हल्की रहे तो ही अच्छी लगती है।
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