तनाव — बीमारी की दहलीज़





कहते हैं,
तनाव कोई मज़ाक नहीं,
ये हँसते हुए चेहरे के पीछे
धीरे-धीरे शरीर को खोखला कर देता है।

मैंने महसूस किया—
जब मन भारी होता है,
तो बदन भी थकने लगता है,
साँसें बेचैन हो जाती हैं,
नींद रूठ जाती है,
और हर दर्द
जैसे दिल से उठकर हड्डियों तक चला जाता है।

तनाव—
केवल सोच नहीं,
एक चुपचाप आता हुआ रोग है,
जो रक्तचाप से लेकर मधुमेह तक
सब कुछ आमंत्रित कर लेता है।

अब मैं जान चुका हूँ—
अगर मन को न सुलझाया,
तो शरीर भी उलझ जाएगा।
इसलिए मैं
हर उस बात को छोड़ देता हूँ
जो चैन छीनती है।

अब मैं
शांति को पकड़ता हूँ
और तनाव को जाने देता हूँ...
क्योंकि ज़िंदगी
हल्की रहे तो ही अच्छी लगती है।


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अति व्यस्तता—मानव स्वभाव के विरुद्ध



एक बेहद अनकहा सत्य है यह,
कि इंसान का स्वभाव
कभी इस हद तक व्यस्त होने का नहीं था।
हमारी आत्मा को चाहिए था शांति,
संपर्क प्रकृति से,
और पल-पल जीने का आनंद।

पर आज,
हम भाग रहे हैं—
समय से आगे निकलने की होड़ में,
स्वयं को खोते हुए।
हर क्षण की चिंता,
हर पल का दबाव,
हमें भीतर से तोड़ रहा है।

"शम: परम् सुखं।"
(शांति ही परम सुख है।)

हमारी आत्मा को गति से नहीं,
शांति से तृप्ति मिलती है।
हमारे मन को जटिलता से नहीं,
सरलता से सुकून मिलता है।
पर अब,
हमारी दिनचर्या
हमारे अस्तित्व के विरुद्ध हो गई है।

आधुनिकता ने हमें साधन तो दिए,
पर सुकून छीन लिया।
हर घड़ी बजता हुआ फ़ोन,
हर पल मिलती अधूरी उम्मीदें,
हमें बेचैनी और अवसाद में डुबो रही हैं।

शायद यही समय है रुकने का।
अपने भीतर झांकने का।
क्योंकि इंसान को बनाया गया था
प्रेम, शांति, और सरलता के लिए—
न कि इस अंतहीन व्यस्तता में खो जाने के लिए।