मौन की महिमा



यदि तुम केवल एक ही कला सिखो,
मौन की गहराइयों में डुबकी लगाओ।
हर कुरूपता, हर अशांति,
तुम्हारे जीवन से स्वयं मिट जाएगी।

मौन वह दीप है, जो भीतर जलता है,
अंधकार को हर क्षण पिघलाता है।
जहाँ शब्दों का शोर समाप्त हो,
वहीं आत्मा का संगीत फूट पड़ता है।

"यत्र तु मौनं वर्धते, तत्र सत्वं भवति।"
जहाँ मौन बढ़ता है, वहाँ सत्व जागता है।
कोई चीख, कोई दर्द नहीं,
सिर्फ आत्मा का गूढ़ सत्य जागता है।

शब्दों के पीछे जो शक्ति है,
वह मौन की ही सन्तान है।
हर ऋषि, हर ज्ञानी ने कहा,
"मौन ही तो ईश्वर की पहचान है।"

मौन नहीं बस चुप्पी का नाम,
यह तो ब्रह्म का स्पर्श है।
शब्द जहां थम जाते हैं,
वहीं ब्रह्मांड का सार प्रकट है।

तुम्हारे भीतर की हलचल,
जो तुम्हें कभी चैन नहीं देती,
मौन में ही वो झरना बन जाती है,
जो हर विष को धो देती है।

यदि चाहो शांति, सुन्दरता,
तो केवल मौन को अपना लो।
बिना शोर, बिना प्रयास,
हर असत्य से खुद को बचा लो।

मौन की इस साधना में,
जीवन का हर रहस्य मिलेगा।
शब्दों की सीमाएं टूटेंगी,
और परम सत्य दिखेगा।


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