इश्क़ का ऐसा दीया


आँखें चुरा तो सकते हो,
मगर दिल चुरा नहीं पाओगे,
हमारी मोहब्बत की छाया से
खुद को बचा नहीं पाओगे।

हम इश्क़ का ऐसा दीया जलाएँगे,
कि उसे बुझा नहीं पाओगे,
हर बात में हमको पाओगे,
पर कभी भुला नहीं पाओगे।

तुम्हारे दिल के बाग़ में
हम गुलाब बन खिल जाएँगे,
और उस महक को तुम
कभी मिटा नहीं पाओगे।

इक दिन तुम भी सच्चाई से,
इश्क़ की रीत निभाओगे,
धड़कन तुम्हारी कहेगी सब,
मगर किसी से छुपा नहीं पाओगे।







No comments:

Post a Comment

Thanks

विचारों की अंतरंगता

मैं मानता हूँ, शारीरिक मिलन सबसे गहन नहीं होता, सबसे गहरा होता है संवाद, जहाँ शब्द नहीं, आत्माएँ मिलती हैं। यदि मैं तुम्हें अपना शरीर दूँ, त...