आधुनिक युग में, विज्ञान और तकनीकी विकास ने हमें नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया है। तकनीकी उन्नति ने हमारे जीवन को अत्यधिक सरल और सुविधाजनक बनाया है, लेकिन इसके साथ ही हमें यह भी समझना आवश्यक है कि यह सुविधाएँ केवल भौतिक सुख-सुविधाओं तक सीमित न रहें। योग और वेदांत हमें यह सिखाते हैं कि बाहरी विकास के साथ आंतरिक जागरूकता का संतुलन बनाना अत्यंत आवश्यक है। यदि हम केवल बाहरी प्रगति पर ध्यान दें और अपने भीतर की चेतना को भूल जाएं, तो यह तकनीकी विकास हमें नियंत्रित करने लगेगा और हम अपनी चेतना के उच्च स्तर तक नहीं पहुँच पाएंगे।
आंतरिक चेतना का महत्व
योग और वेदांत के अनुसार, बाहरी जीवन का उद्देश्य केवल भौतिक साधन प्राप्त करना नहीं है, बल्कि आंतरिक शांति और संतुलन की ओर बढ़ना है। वेदांत हमें सिखाता है कि मानव का अंतिम उद्देश्य आत्मा की उच्चतम स्थिति को प्राप्त करना है। जैसा कि भगवद्गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं:
> "यदा ते मोहकलिलं बुद्धिर्व्यतितरिष्यति।
तदा गन्तासि निर्वेदं श्रोतव्यस्य श्रुतस्य च।।"
(भगवद्गीता 2.52)
अर्थात् जब तेरी बुद्धि मोह के वन से पार हो जाएगी, तब तू उस समय श्रुत-संस्कृत सभी विषयों के प्रति निःस्पृह हो जाएगा।
इस श्लोक में श्रीकृष्ण का संदेश है कि जब हमारा मन मोह और भ्रम से मुक्त हो जाता है, तब ही हम सच्ची मुक्ति की ओर अग्रसर होते हैं। लेकिन आजकल तकनीकी प्रगति के कारण हमारा मन बाहरी दुनिया में अधिक उलझ जाता है। इस प्रकार की प्रगति से हमें बाहरी सुविधाएँ तो मिल सकती हैं, लेकिन हमारी आंतरिक शांति को यह अकेले नहीं साध सकती।
आधुनिक जीवन में योग और ध्यान का स्थान
आधुनिक जीवन में जहाँ तकनीकी निर्भरता लगातार बढ़ रही है, वहाँ योग और ध्यान एक संतुलनकारी शक्ति के रूप में काम करते हैं। योग न केवल हमारे शरीर को स्वस्थ रखता है, बल्कि हमारे मन को भी एकाग्र और शांत बनाता है। ध्यान हमें इस भौतिक दुनिया से ऊपर उठकर आत्मा की शांति की ओर ले जाता है। जैसा कि पतंजलि योगसूत्र में कहा गया है:
> "योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः"
(पतंजलि योगसूत्र 1.2)
अर्थात् योग का उद्देश्य चित्त (मन) की वृत्तियों (हलचल) को रोकना है।
इसका मतलब है कि योग हमें मन की स्थिरता और एकाग्रता की ओर ले जाता है, जिससे हम बाहरी उलझनों से परे होकर अपने भीतर की शक्ति को पहचान पाते हैं। तकनीकी विकास के समय में योग हमारे मन को इस प्रकार प्रशिक्षित करता है कि हम भौतिक चीजों में उलझे बिना भी अपने आंतरिक उद्देश्यों को प्राप्त कर सकते हैं।
तकनीक के साथ विवेकपूर्ण दृष्टिकोण
वेदांत के अनुसार, किसी भी बाहरी वस्तु से जुड़ाव हमें आत्म-ज्ञान के मार्ग से भटका सकता है। हमें यह समझना चाहिए कि तकनीकी विकास का उद्देश्य हमारे जीवन को बेहतर बनाना है, न कि हमें इसके अधीन करना। तकनीकी विकास का विवेकपूर्ण प्रयोग तभी संभव है जब हमारे पास एक निर्मल और धीर-गंभीर दृष्टिकोण हो। उपनिषदों में भी कहा गया है:
> "सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्म।"
(तैत्तिरीय उपनिषद 2.1)
अर्थात् ब्रह्म सत्य, ज्ञान और अनंत है।
यह श्लोक हमें यह समझाता है कि वास्तविक ज्ञान और सत्य की खोज अनंत है, और तकनीकी विकास केवल एक माध्यम है जो हमें इस यात्रा में सहायक हो सकता है। लेकिन यदि हम तकनीक के माध्यम से आत्मा की अनंतता को भूल जाएं, तो यह हमारे ऊपर हावी हो सकती है।
अतः, यह आवश्यक है कि हम बाहरी विकास के साथ-साथ आंतरिक चेतना की ओर भी ध्यान दें। योग और वेदांत का यह सन्देश है कि हम अपने मन को शांत और स्थिर रखें ताकि तकनीकी प्रगति हमारे जीवन में सहायक बने, न कि हमारे ऊपर हावी हो जाए। योग, ध्यान और वेदांत का यह संतुलित दृष्टिकोण ही हमें एक संतुलित, सुखी और आत्म-संतुष्ट जीवन की ओर ले जा सकता है।
हमारे लिए यह समय की माँग है कि हम तकनीकी प्रगति के साथ आत्म-साक्षात्कार की ओर बढ़ें, ताकि हम उच्च चेतना की ओर अग्रसर हो सकें और वास्तविक स्वतंत्रता का अनुभव कर सकें।
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