शरीर— लोहे सा कठोर,
हर चुनौती को झेलने को तैयार।
पसीने की हर बूंद में लिखा है,
सहनशक्ति का अमर विचार।
मन— एक स्थिर सरोवर,
न आंधी, न तूफ़ान डगमगा सके।
न सुख, न दुख इसे हिला सके,
बस सत्य का दीप जला सके।
आत्मा— योद्धा की भांति प्रबल,
जो घुटने टेकना सीखा नहीं।
हर हार से मजबूत हुआ,
हर दर्द से सीखा, झुका नहीं।
हृदय— कवि की तरह कोमल,
हर भाव में गहराई बसी।
जहाँ प्रेम भी, आग भी,
जहाँ शांति भी, विद्रोह भी।
यही लक्ष्य है, यही साधना,
अथक यात्रा, अनंत साधना।
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