मैं अब हूँ,
न कल की सोच, न कल का बोझ।
न कल की ख्वाहिशें, न परसों के सपने,
बस अभी, यहीं, इस पल में।
यह शरीर, मेरा घर।
न परफेक्शन की चाह, न बदलाव का डर।
बस इस पल को महसूस करना,
इसकी हर धड़कन का सम्मान करना।
मैं अब हूँ,
न बीते कल के निशान का गम,
न आने वाले कल की चिंता।
बस यह क्षण, जो मेरा है,
यह सांस, जो मुझे ज़िंदा कहती है।
यहीं से शुरू होता है जीवन,
यहीं से मैं खुद को पाता हूँ।
क्योंकि मैं अब हूँ,
और यही काफी है।
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