ध्यान कोई कर्म नहीं, यह प्रेम सा गिरना है,
मन की हलचल थम जाए, यह एक बहना है।
न कोई प्रयास, न कोई गंतव्य,
यह तो बस स्वयं में खोने का क्षणव्य है।
जहां शून्यता गूंजे, वहां ध्यान है,
जहां कोई स्वर न हो, वह स्थान है।
जहां मन रुके, और समय ठहर जाए,
वह क्षण ध्यान के सागर में उतर जाए।
जैसे सूरज का रंग शाम में ढलता,
जैसे फूल से खुशबू धीरे-धीरे छलकता।
वैसे ही ध्यान, प्रेम की तरह बहता,
यह अस्तित्व के संग गहराई में रहता।
न तुम करो, न कोई प्रयास यहां,
बस मौन में डूबो, यह मार्ग है वहां।
जहां होना भी न होने में बदल जाए,
ध्यान वही है, जहां सब शून्य समा जाए।
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