धरती के गोद में बसा, एक युवा अर्जुन,
सफलता की माया में, था उसका बस ध्यान।
धन-दौलत की मया से, वह प्रीति नहीं मिली,
मन की गहराइयों में, थी वह अनुराग खोजने चली।
एक दिन, उसने ध्यान की यात्रा पर निकला,
वाराणसी के तट पर, अपने अंतर की ओर चला।
गंगा की लहरों में, उसने अपनी आत्मा को पाया,
महान ऋषियों की चरणों में, उसने नवीनतम ज्ञान पाया।
समझा अर्जुन ने, कि धन की माया में सच्चाई नहीं है,
जीवन की वास्तविकता, अंदर की खोज में ही समाई है।
तब उसने कैलाश पर्वत की यात्रा की शुरुआत की,
जहां भगवान का निवास, स्वयं में ही प्रकट होती।
पर्वत की ऊँचाइयों पर, अर्जुन का मन शांत हुआ,
और अपनी आत्मा को जानने के लिए उसने वहाँ ठहरा।
वहाँ, उसने अपने अंतर की गहराइयों में जाकर अपने आत्मा को खोजा,
और अपने मन की शांति और स्थिरता को पाया।
आत्मा की खोज में, उसने सच्चाई का साथ पाया,
और जीवन की सार्थकता, आत्मा की अद्भुतता में जाकर जानी।
विश्वास में, शांति में, उसने धरती पर फिर आया,
और अपने जीवन को आत्मा की सांझीवनी साधना में बदल लिया।
और जैसे ही उसने अपने जीवन की यात्रा पूरी की,
उसकी आध्यात्मिक खोज ने उसे आत्मा की गहराइयों में ले जाने का संकेत दिया।
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