अंधेरे में फुसफुसाहट





फर्श पर हल्की सी आहट, हवा में कोई साँस,
जब तुम्हें लगता है, घर में नहीं है कोई पास।
दीवारें हिलती, परछाइयाँ होती लंबी,
कुछ अनजाना देख रहा है, हर बात बारीकी से जाँची।

बाहर की हवा चीखती, पर अंदर और खौफनाक,
जैसे घर के भीतर गूँजती हो एक पुरानी खामोश आवाज़।
कदमों की आहट, दरवाजे के पास ही थम जाती,
तुम ठिठक जाते हो, दिल की धड़कन और बढ़ जाती।

बत्ती झपकती है, खामोशी घनी है,
तुम्हारी दुआ है कि ये डर बस रात का हिस्सा हो सही।
पर फिर कानों के पास आती है धीमी फुसफुसाहट,
एक ऐसी आवाज़, जिसे सुनने की नहीं थी चाहत।

तुम्हारा नाम पुकारती, धीमे और धीमे सुर में,
एक जगह और समय से, जो तुम्हें याद भी नहीं।
अंधेरे की बातें, पुरानी छुपी सच्चाई,
सोते हुए भी जागती रही वो परछाई।

आईने में दिखता है, जो वहाँ नहीं होना चाहिए,
एक साया, एक आकृति, जिसकी आँखें खोखली।
अब वो पास आ रही है, करीब और करीब,
उसकी साँसें ठंडी, जैसे ठंडा समंदर का अजीब।

भागो अगर तुम भाग सकते हो, पर कहाँ जाओगे?
वो तुम्हें तुम्हारे बचपन से ही ढूंढती आ रही है।
एक डरावना सपना अब हकीकत में बदल गया है—
वो चीज़ जो तुम्हारे बिस्तर के नीचे रहती थी।

और अब वो तुम्हारे पास है, तुम्हारे चेहरे पर उसका हाथ,
वो कहती है—वापस स्वागत है, तुम्हारे सबसे अंधेरे ख्यालात!






आंदोलन की शक्ति और लोकतंत्र पर सवाल

अन्ना हजारे का भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन और जन लोकपाल बिल की मांग भारतीय राजनीतिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय के रूप में उभरा है। यह आंदोलन 2011 में पूरे देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ एकजुटता का प्रतीक बन गया, जब अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार को समाप्त करने और जन लोकपाल विधेयक को लागू कराने के लिए भूख हड़ताल शुरू की। उनकी इस पहल ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया और देशभर में भ्रष्टाचार के खिलाफ जनजागृति का सूत्रपात किया।

आंदोलन की शुरुआत और मुख्य मांगें

चार दशकों से लंबित लोकपाल बिल को पास कराने की मांग के साथ अन्ना हजारे ने इस आंदोलन की शुरुआत की। अन्ना की मांग थी कि एक प्रभावी और सशक्त जनलोकपाल बनाया जाए, जो भ्रष्टाचार से निपटने के लिए स्वतंत्र रूप से काम कर सके और उच्च पदों पर बैठे नेताओं व अधिकारियों के खिलाफ भी कार्यवाही करने की शक्ति रखे। अप्रैल 2011 में, अन्ना हजारे ने दिल्ली के जंतर-मंतर से भूख हड़ताल शुरू की, जिससे देशभर में जनसमर्थन की लहर दौड़ पड़ी। आम जनता, खासकर युवा वर्ग, भ्रष्टाचार के खिलाफ इस मुहिम में बड़े पैमाने पर शामिल हुए। 


सरकार की असफलता और विपक्ष की भूमिका
भ्रष्टाचार के मुद्दे पर केंद्र सरकार विपक्ष की भूमिका निभाने में असफल रही थी। अन्ना हजारे का आंदोलन उसी समय सामने आया जब कई बड़े घोटाले उजागर हो रहे थे, और जनता का विश्वास राजनीतिक दलों पर कम हो रहा था। यहां तक कि जब कांग्रेस ने अन्ना हजारे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए, तो यह उन पर ही उल्टा पड़ गया, क्योंकि जनता ने अन्ना की साफ छवि को स्वीकार किया था।

अन्ना हजारे के अनशन के दबाव में, केंद्र सरकार को उनकी मांगों पर विचार करना पड़ा और सरकार ने संयुक्त समिति के गठन का निर्णय लिया, जिसमें सिविल सोसाइटी और सरकार के सदस्य शामिल थे। लेकिन जल्द ही दोनों पक्षों के बीच मतभेद उभरने लगे। सिविल सोसाइटी चाहती थी कि प्रधानमंत्री, न्यायपालिका और संसद के सदस्यों का व्यवहार भी लोकपाल के दायरे में लाया जाए, जिसे सरकार ने मानने से इनकार कर दिया। 

जुलाई 2011 तक, सरकार और सिविल सोसाइटी के बीच चर्चा का दौर ठंडा पड़ चुका था। इसी बीच अन्ना हजारे ने 16 अगस्त को दोबारा अनशन की घोषणा कर दी, लेकिन सरकार ने इस बार उनके आंदोलन को कुचलने की कोशिश की और उन्हें अनशन शुरू करने से पहले ही गिरफ्तार कर लिया गया। उनकी गिरफ्तारी ने देशभर में विरोध प्रदर्शनों की एक नई लहर को जन्म दिया। 

जनता का अपार समर्थन और आंदोलन का प्रभाव

अन्ना हजारे की गिरफ्तारी के बाद देशभर में लोगों ने प्रदर्शन किए, और हजारों लोग सड़कों पर उतर आए। अन्ना की इस आंदोलन में सबसे बड़ी ताकत उनकी बेदाग छवि थी, जिसके कारण लोग उन्हें एक ईमानदार और सत्यनिष्ठ नेता मानते थे। 

अन्ना को देश के हर कोने से समर्थन मिला, और उनके आंदोलन ने भ्रष्टाचार के खिलाफ एक राष्ट्रीय मुहिम का रूप ले लिया। भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना के इस आंदोलन ने न केवल आम जनता बल्कि सरकारी कर्मचारियों और राजनीतिक कार्यकर्ताओं का भी ध्यान आकर्षित किया। 


अन्ना हजारे का आंदोलन केवल एक विधेयक पास कराने की लड़ाई नहीं थी, यह देशभर में फैले भ्रष्टाचार के खिलाफ जनाक्रोश का प्रतीक बन चुका था। अन्ना हजारे भ्रष्टाचार से त्रस्त जनता के गुस्से का प्रतीक बनकर उभरे। आम जनता का मानना था कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में सरकार ने अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया था, और अन्ना हजारे में उन्होंने एक ईमानदार और सशक्त नेता देखा, जिसने उन्हें एकजुट किया।
अन्ना हजारे की बेदाग छवि और उनका अहिंसक तरीका ही उन्हें जनता के बीच इतना लोकप्रिय बना सका। इस आंदोलन में युवाओं, कार्यकर्ताओं और कई सरकारी कर्मियों ने भी निजी रूप से अन्ना का समर्थन किया। चुनाव जीतने के बाद नेता जनता की भावनाओं को अनदेखा करते हैं और अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ लेते हैं, जिससे जनता का गुस्सा और रोष बढ़ता गया। यही गुस्सा अन्ना के नेतृत्व में सड़कों पर आया।


सरकार पर दबाव और आंदोलन की सफलता

अन्ना हजारे के अहिंसक आंदोलन के आगे आखिरकार सरकार को झुकना पड़ा। 28 अगस्त, 2011 को अन्ना ने 12 दिन बाद अपना अनशन समाप्त किया, जब सरकार ने लोकपाल विधेयक पर उनकी तीन मुख्य मांगों पर चर्चा कराने का वादा किया। यह आंदोलन भारतीय राजनीतिक तंत्र में एक बड़े बदलाव की शुरुआत थी, जिसने यह साबित किया कि जनशक्ति का प्रभाव कितना गहरा हो सकता है।

हालांकि, आंदोलन के बाद अन्ना हजारे की टीम में मतभेद उभरने लगे, और धीरे-धीरे आंदोलन की तीव्रता कम हो गई। फिर भी, यह आंदोलन देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ जागरूकता और कानून बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।

आंदोलन की शक्ति और लोकतंत्र पर सवाल
अन्ना हजारे के नेतृत्व में सिविल सोसाइटी ने जनलोकपाल बिल के लिए सरकार पर दबाव डाला। हालांकि, सरकार ने इसे ब्लैकमेलिंग करार दिया और कहा कि कानून बनाने का अधिकार केवल संसद के पास है। बावजूद इसके, अन्ना का आंदोलन न सिर्फ एक मजबूत संदेश देने में कामयाब रहा, बल्कि उसने सरकार को अपने भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम को मजबूत करने के लिए मजबूर कर दिया।

आंदोलन के प्रभाव और भविष्य

अन्ना हजारे का आंदोलन भारतीय लोकतंत्र में एक नया मोड़ लेकर आया, जिसमें सिविल सोसाइटी ने भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार पर कड़ा दबाव बनाया। यह आंदोलन इस बात का प्रमाण है कि जनता की एकजुटता और सही नेतृत्व के बल पर बड़े बदलाव किए जा सकते हैं। इस आंदोलन ने भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में जनता को एक नई उम्मीद दी, और यह सिखाया कि जनशक्ति किसी भी राजनीतिक तंत्र को बदलने की क्षमता रखती है।

अन्ना हजारे का यह आंदोलन भ्रष्टाचार के खिलाफ एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जिसने भारत के राजनीतिक और सामाजिक ताने-बाने में सुधार की दिशा में एक नई लहर पैदा की। हालांकि, लोकपाल बिल अब भी पूरी तरह से लागू नहीं हो पाया है, लेकिन इस आंदोलन ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जनआंदोलनों के महत्व को उजागर कर दिया।
अन्ना हजारे का जनलोकपाल आंदोलन एक ऐतिहासिक घटना है, जिसने भारत में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को एक नई दिशा दी। इस आंदोलन ने साबित किया कि अगर जनता एकजुट हो तो वह लोकतांत्रिक संस्थानों को भी जवाबदेह बना सकती है। अन्ना हजारे का यह आंदोलन भारत के इतिहास में भ्रष्टाचार के खिलाफ एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ, और इसने देश के राजनीतिक और सामाजिक विमर्श में गहरा प्रभाव डाला।

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श्वासों के बीच जो मौन है, वहीं छिपा ब्रह्माण्ड का गान है। सांसों के भीतर, शून्य में, आत्मा को मिलता ज्ञान है। अनाहत ध्वनि, जो सुनता है मन, व...