चटनी



धनिया-पुदीना कटोरे में बैठे,
सोच रहे थे—
“ज़िन्दगी में हमारी भी koi इज़्ज़त hai kya?
Roz log तोड़ के ले जाते हैं—
aur bolte hain चटनी bana diya!”

Mirchi ने तड़पकर कहा—
“Bhai, तीखा toh main hoon,
par duniya mujhe bhi पीस देती है…
shayad यही zindagi ka rule hai—
jo जितना strong ho,
उतना जल्दी पीसा जाता है!”

Namak हंसा—
“Arre, तुम dono philosophy mat jhaado…
Main toh बस itna jaanta hoon,
zindagi ho ya chutney,
thोड़ा sa Namak होना जरूरी है—
tabhi taste aata hai!”

Mixer ka jar घूमता जा रहा था,
sabko अपनी-अपनी जगह pe घुमा रहा था—
jaise दुनिया लोगों को घुमाती है…
Par upar से lid चिल्ला रहा था—
“Shanti se रहो, वरना उड़ jaaoge!”

Aur jab chutney तैयार हुई—
toh bowl mein उतरकर बोली:
“देखो दोस्तों, हम sab mila kar hi बने हैं…
अकेले धनिया kuch nahi,
अकेली mirchi kuch nahi,
अकेला नमक kuch nahi…

Zindagi bhi chutney ki तरह है—
Har insaan एक ingredient,
Aur milkar hi banta hai असली स्वाद!

Isliye कड़वाहट कम रखो,
नमक बराबर डालो,
Aur thoda sa prem ka tadka lagao—
Tabhi zindagi bolegi…
‘Wah bhai, kya chutney bani hai!’


जवाहरलाल नेहरू: एक विरासत और एक विवादास्पद इतिहास

जवाहरलाल नेहरू, भारत के प्रथम प्रधानमंत्री, का हमारे देश के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान है। उनकी छवि एक शिक्षित, दूरदर्शी और करिश्माई नेता के रूप में रही है, जो स्वतंत्रता संग्राम के महान योद्धा रहे। उन्होंने आधुनिक भारत की नींव रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। लेकिन, नेहरू परिवार से जुड़े वंशवाद और कुछ विवादास्पद निर्णयों के कारण उनकी विरासत पर हमेशा प्रश्नचिह्न लगाए जाते रहे हैं। बाल दिवस पर नेहरू की बच्चों के प्रति प्रेम की बात होती है, लेकिन उनकी राजनीतिक धरोहर की असलियत पर भी नजर डालना आवश्यक है।

नेहरू की राजनीति में परिवारवाद की शुरुआत

नेहरू का अपने परिवार के बच्चों से विशेष लगाव था। यह प्यार और स्नेह ही नहीं, बल्कि एक ऐसी परंपरा थी, जो उनके जाने के बाद भी आगे बढ़ी। नेहरू ने अपनी पुत्री इंदिरा गांधी को राजनीति में एक विशेष स्थान दिलाया और उन्हें अपने उत्तराधिकारी के रूप में तैयार किया। बाद में इंदिरा गांधी ने भी अपने बेटे संजय गांधी और फिर राजीव गांधी को राजनीति में आगे बढ़ाया। यह सिलसिला यहीं नहीं रुका, बल्कि आज भी नेहरू परिवार की छठी पीढ़ी भारतीय राजनीति में सक्रिय रूप से भाग ले रही है।

इस तरह के वंशवाद ने भारत में एक परंपरा सी बना दी है, जिसे अनेक लोग समस्या मानते हैं। किसी एक परिवार की निरंतर सत्ता में उपस्थिति लोकतंत्र में भेदभाव और असमानता को बढ़ावा दे सकती है।

नेहरू की आर्थिक और विदेश नीति पर विवाद

नेहरू की समाजवादी सोच ने भारत की आर्थिक नीतियों को एक सीमित दायरे में बांध दिया। उनके द्वारा अपनाई गई आर्थिक योजनाओं के कारण भारत को गरीबी और बेरोजगारी से जूझना पड़ा। भारत की शिक्षा नीति भी उसी ढर्रे पर थी, जिसने विज्ञान, तकनीक और उद्यमिता के विकास में अड़चनें डालीं।

इसके अलावा, उनकी विदेश नीति भी विवादास्पद रही। कश्मीर और चीन के साथ उनकी नीति पर कई आलोचक प्रश्न उठाते हैं। 1962 में चीन से मिली पराजय और कश्मीर समस्या का समाधान न निकल पाना उनकी विदेश नीति की बड़ी असफलताएँ मानी जाती हैं।

वंशवाद की आलोचना और मोदी का ओबीसी होना

जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने, तो उनकी पृष्ठभूमि के कारण उन्हें नीच तक कहा गया। वंशवाद की परंपरा वाले एक वर्ग ने मोदी के ओबीसी होने और साधारण पृष्ठभूमि से आने को लेकर भेदभाव किया, जो एक गंभीर समस्या को दर्शाता है। नेहरू और उनके परिवार के सदस्य हमेशा एक विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग के रूप में देखे गए, वहीं मोदी को उनकी गरीबी और गुजरात के क्षेत्रीय स्कूल में शिक्षा को लेकर आलोचना झेलनी पड़ी।

यह विडंबना ही है कि जिस देश में वंशवाद को सामाजिक और राजनीतिक प्रतिष्ठा का आधार माना गया, वहाँ एक साधारण परिवार के व्यक्ति को उसका स्थान प्राप्त करने के लिए आलोचना सहनी पड़ी।

नेहरू की आलोचना का निष्कर्ष

यह सही है कि नेहरू ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई और भारतीय राजनीति को एक दिशा दी। लेकिन उनकी कुछ नीतियाँ और वंशवाद को बढ़ावा देने की प्रवृत्ति एक बड़ी समस्या भी बन गई।

हमने देखा कि नेहरू के नाम पर जो सम्मान मिलता है, वह उनके राजनीतिक योगदान के साथ-साथ उनके परिवार द्वारा स्थापित एक परंपरा का परिणाम भी है। लेकिन लोकतंत्र में इस तरह के वंशवाद को प्रश्रय देना एक समाज के विकास में रुकावट बन सकता है।


हम नेहरू का सम्मान करते हैं, क्योंकि उन्होंने इस देश को स्वतंत्रता दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी व्यक्तिगत महानता को हम नकार नहीं सकते। लेकिन उनके कुछ फैसलों, उनकी नीतियों और उनके परिवारवाद की परंपरा ने भारत की राजनीति और समाज को एक विशेष दिशा में ढालने का काम किया है। ऐसे में हमें चाहिए कि हम हर नेता को समान दृष्टि से देखें और वंशवाद की जगह काबिलियत को महत्व दें।