मीरा

जब मीरा यह कहती है कि बस इन तीन बातों से काम चल जाएगा और कुछ जरूरत नहीं है और कभी कुछ न मांगूंगी, बस इतना पर्याप्त है, बहुत है, जरूरत से ज्यादा है—और इसके बाद जो वचन है:

          मोरमुकुट पीताम्बर सोहे, गल बैजंती माला।

जैसे कि दर्शन हो गया! ये मोरमुकुट पहने हुए, ये पीतांबर पहने हुए, गले में वैजंतीमाला डाले हुए कृष्ण सामने खड़े हो गए! जिसके हृदय में चाकरी का भाव हुआ, उसके सामने कृष्ण खड़े हो ही जाएंगे। अब और कमी क्या रही!

         बिन्द्राबन में धेनु चरावें, मोहन मुरली वाला।

अब मीरा को दिखाई पड़ने लगा। मीरा की आंख खुली। अब मीरा अंधी नहीं हैं। यह जो...

       मोरमुकुट पीताम्बर सोहे, गल बैजंती माला।
       बिन्द्राबन में धेनु चरावें, मोहन मुरली वाला।

...यह दृश्य हो गया। रूप बदला। यह जगत मिटा, दूसरा जगत शुरू हुआ।

      ऊंचे—ऊंचे महल चिनाऊं, बिच—बिच राखूं बारी।

अब सोचती है मीरा: अब क्या करूं?

                     ऊंचे—ऊंचे महल चिनाऊं...

अब परमात्मा मिल गया। यह परमात्मा की झलक आने लगी। अब परमात्मा के लिए—

       ऊंचे—ऊंचे महल बिनाऊं, बिच—बिच राखूं बारी।

बीच—बीच में बारी भी रख लूंगी, क्योंकि मैं तो वहां रहूंगी।

      चाकर रहसूं बाग लगासूं, नित उठ दरसन पासूं।
       बिन्द्राबन की कुंज गलिन में, तेरी लीला गासूं।
     ऊंचे—ऊंचे महल चिनाऊं, बिच—बिच राखूं बारी।

बीच—बीच में झरोखे रख लूंगी कि तुम मुझे दिखाई पड़ते 

      रहो और कभी—कभी मैं तुम्हें दिखाई पड़ जाऊं।
         सांवरिया के दरसन पाऊं, पहर कुसुंबी सारी।
      जोगी आया जोग करण कूं, तप करने संन्यासी।
        हरि भजन कूं साधु आया, बिन्द्राबन के वासी।

मीरा कहती है: मैं तो सिर्फ हरि—भजन को आई हूं। जोगी जोगी की जाने। संन्यासी संन्यासी की जाने।

                 जोगी आया जोग करण कूं...

उसको योग करना है। उसको कुछ करके दिखाना है। मेरी करके दिखाने की कोई आकांक्षा नहीं है। मैं—और क्या करके दिखा सकूंगी? तुम मालिक, मैं तुम्हारी चाकर! तुम्हीं मेरे सांस हो, तुम्हीं मेरे प्राण हो। मैं क्या करके दिखा सकूंगी? करने को कहां कुछ है? करने को उपाय कहां है? करोगे तो तुम! होगा तो तुमसे! मेरे किए न कुछ कभी हुआ है, न हो सकता है।
जोगी जोगी की जाने, मीरा कहती है।

       जोगी आया जोग करण कूं, तप करने संन्यासी।

और तपस्वी है, वह तप करने आया है। उसको व्रत—उपवास इत्यादि करने हैं। उनकी वे समझें।

मीरा कहती है: उनसे मुझे कुछ लेना—देना नहीं है। मुझे भूल कर भी जोगी या तपस्वी मत समझ लेना। मेरा तो कुल इतना ही आग्रह है:

         हरिभजन कूं साधु आया, बिन्द्राबन के वासी।
     हे वृंदावन के रहने वाले! मैं तो भजन करने आई हूं।

साध—संगत में उसने भजन सीखा है। मैं तो तुम्हारे गुण गाना चाहती हूं। मैं तो तुम्हारी प्रशंसा के गीत गाना चाहती हूं। मैं तो तुम्हारे पास एक गीत बनना चाहती हूं। इस शरीर की सारंगी बना लूंगी और नाचूंगी।

फर्क क्या है? भक्त परमात्मा के पास सिर्फ नाचना चाहता है, उत्सव करना चाहता है, उसकी और कोई मांग नहीं। अहोभाव प्रकट करना चाहता है। क्योंकि जो चाहिए, वह तो मिला ही हुआ है। जो चाहिए, उसने दिया ही है; मांगने का कोई सवाल नहीं, सिर्फ धन्यवाद देना चाहता है


विफलता की जलन



कल्पना करो, अगर विफलता को हम जानते,
सफलता पाने के लिए वही जलन चाहिए होती है।
जैसे व्यायाम में जलन से मांसपेशियां बनती हैं,
वैसे ही विफलता से आत्मविश्वास का निर्माण होता है।

क्या होगा अगर हम विफलता को समझ पाते,
कि यह भी एक कदम है, जो हमें ऊपर उठाता है?
सच में, विफलता से डरना नहीं, उसे अपनाना है,
यह हमारी असली ताकत का अहसास कराता है।

हर बार गिरकर उठना, यही है सचाई,
यह वही जलन है जो हमें बनाती है सच्चे इंसान।
अगर हम विफलताओं को अंगीकार करें,
तो क्या यह हमारी सफलता की ओर बढ़ने में मदद नहीं करेगा?

विफलता को न समझो बोझ, बल्कि यह एक अभ्यास है,
जो हमें मजबूत बनाता है, जैसे हर कसरत का असर।
इसमें कोई शंका नहीं, यह हमारी यात्रा का हिस्सा है,
क्योंकि वही जलन ही हमें सच्ची सफलता दिलाती है।


सोचना और करना



विफलता सिखाती है, क्या काम करता है,
यह रास्ता, वह तरीका, यही सब समझ आता है।
लेकिन ज्यादा सोचना, बस टालने की राह है,
यह सोच-सोचकर बैठना, समय को बर्बाद करता है।

सोचो नहीं, बस करो, यही है सच्ची बात,
क्योंकि कर्म से ही मिलती है सफलता की सौगात।
विफलता से डरना नहीं, उसे अपनाओ,
क्योंकि हर गलती में छुपा होता है नया रास्ता।

ज्यादा सोचने से सिर्फ भ्रम होता है,
लेकिन करना ही सबको सही दिशा दिखाता है।
सोचना छोड़ो, हाथ में काम लो,
समय बर्बाद न करो, अब बस इसे खुद पर छोड़ दो।


सफलता और विफलता की राह





जो नया सीखता है, समझो उसे यह बात,
विफलता है सफलता से भी एक कदम पास।
विफलता का हर पल, सफलता में बदल जाता है,
जब तक तुम उसे सीखकर आगे बढ़ जाते हो।

सोचते रहना सफलता को, नहीं लाता कोई फल,
सोच सोचकर बैठे रहना, यही होता है असल हलचल।
विफलताओं से न डर, उन्हें अपना साथी बना,
समय के साथ वह सफलता की सीढ़ी बन जाएगा।

विफलता नहीं है अंत, बल्कि एक शुरुआत,
हर असफलता में है सफलता की छांव।
सोच को छोड़, कर्म पर ध्यान दे,
क्योंकि सोच ही अंत होती है, कर्म ही है जीवन का संग्राम।

सीखो, बढ़ो और गिरकर उठो,
तभी सफलता से सच्चा रिश्ता बनाओ।
विफलता को अपना बनाओ,
सफलता तब तुम्हारे कदमों में होगी, यह जानो।


सीमाओं का सामर्थ्य



सच्ची ताकत होती है सीमाएँ तय करना,
मदद देना, लेकिन खुद को न खोना।
हां, एक हाथ बढ़ा सकते हो तुम,
पर किसी और की अराजकता से डूबने मत देना खुद को।

शांति की रक्षा करना ज़रूरी है,
यह स्वार्थ नहीं, यह अस्तित्व की बात है।
जब तक खुद का संतुलन कायम है,
तब तक ही दूसरों के लिए रास्ता खोलो, यही सही है।

हर किसी का संघर्ष उसका है,
तुम्हारी शांति, तुम्हारा कर्तव्य।
अपनी सीमा में रहकर,
कभी न किसी की गड़बड़ी में खो जाना है।

मदद करना है, तो पूरी समझ से करो,
लेकिन अपनी दुनिया को तोड़कर नहीं।
क्योंकि अपनी शांति को बचाकर रखना,
यह किसी के लिए नहीं, खुद के लिए जरूरी है।


अपनी क्षमता को व्यर्थ न जाने दो

क्यों रुकूं मैं, जब राहें बुला रही हैं, क्यों थमूं मैं, जब हवाएं गा रही हैं। यह डर, यह संशय, यह झूठा बहाना, इनसे नहीं बनता किसी का जमाना। आध...