अलग-अलग व्यक्तित्व में जीते हैं हम।
माया की बंधन में बंधे हुए,
स्वतंत्रता का सपना कहीं खो गया है।
परम सत्य से दूर भागे हम,
बनकर परछाई, भ्रम में रहते हैं हम।
संवेदनाओं की दुनिया में खोए,
अपनी सच्चाई से हम मुंह मोड़ते हैं।
पर ध्यान से सुनो इस मन की बात,
आत्मा की गहराइयों से आई है ये आवाज़।
मैं सदा मुक्त हूँ, सदा स्वतंत्र,
जैसे "मैं जीवित हूँ", ये अटल विश्वास।
माया का पर्दा हटाकर देखो,
अहम् के भ्रम को भुलाकर देखो।
तुम सदा मुक्त हो, सदा आनंद में,
यहाँ और अभी, बस इसे पहचानो।
यह स्वप्न तोड़ो, जागो अपने भीतर,
हर क्षण, हर पल में खोजो अपना सच्चा स्वर।
मुक्ति का मर्म जानो, जागो अपने सत्य में,
"मैं सदा स्वतंत्र हूँ", इस विश्वास के संग जीयो हर क्षण।