मैं सदा स्वतंत्र हूँ

संसार के जाल में फंसकर हम,
अलग-अलग व्यक्तित्व में जीते हैं हम।
माया की बंधन में बंधे हुए,
स्वतंत्रता का सपना कहीं खो गया है।

परम सत्य से दूर भागे हम,
बनकर परछाई, भ्रम में रहते हैं हम।
संवेदनाओं की दुनिया में खोए,
अपनी सच्चाई से हम मुंह मोड़ते हैं।

पर ध्यान से सुनो इस मन की बात,
आत्मा की गहराइयों से आई है ये आवाज़।
मैं सदा मुक्त हूँ, सदा स्वतंत्र,
जैसे "मैं जीवित हूँ", ये अटल विश्वास।

माया का पर्दा हटाकर देखो,
अहम् के भ्रम को भुलाकर देखो।
तुम सदा मुक्त हो, सदा आनंद में,
यहाँ और अभी, बस इसे पहचानो।

यह स्वप्न तोड़ो, जागो अपने भीतर,
हर क्षण, हर पल में खोजो अपना सच्चा स्वर।
मुक्ति का मर्म जानो, जागो अपने सत्य में,
"मैं सदा स्वतंत्र हूँ", इस विश्वास के संग जीयो हर क्षण।


सफर में साथ का सौंदर्य


मैंने एक इंसान को पहाड़ चढ़ने में मदद की,
उसके संघर्ष में अपने कदम भी बढ़ाए।
हर चोटी की ओर बढ़ते हुए,
जैसे अपने भीतर के डर मिटाए।

उसकी थकी सांसों का सहारा बना,
उसके गिरते कदमों को संबल दिया।
उसकी जीत में मैंने पाया,
अपना भी कुछ खोया हुआ रास्ता।

हर पत्थर, हर ढलान पर,
हम दोनों ने साथ में संतुलन साधा।
जितना उसे ऊपर चढ़ाया,
उतना ही मैंने खुद को संभाला।

जब उसने शिखर पर कदम रखा,
तो मैंने देखा, मैं भी वहाँ था।
उसकी सफलता में मेरी खुशी,
जैसे मेरा भी सपना पूरा हुआ।

मैंने समझा, सहायता सिर्फ़ देना नहीं,
वो हमें खुद को खोजने का अवसर देती है।
दूसरों को ऊंचाई पर पहुंचाने में,
हम भी ऊंचा उठ जाते हैं।

यह यात्रा अकेले की नहीं,
यह साझेदारी का सार है।
दूसरों के सपनों को पंख देने में,
हम अपने पंख भी फैला लेते हैं।


खुद को गले लगाना



मैंने अपनी पूरी ज़िन्दगी दूसरों के लिए जिया,
इतना खो दिया खुद को, कि मैं कहीं गायब सा हो गया।
लोगों के चेहरों पर मुस्कान बिखेरने के चक्कर में,
अपनी ही मुस्कान को कहीं खो दिया था मैंने।

सोचा था, जो मैं दूँगा, वही लोग लौटाएंगे,
पर जब मैंने खुद से कुछ माँगा, तो वो समझ न पाएंगे।
मैंने सिखा कि खाली प्याले से कुछ नहीं मिल सकता,
अगर मैं खुद से प्यार नहीं करूंगा, तो दूसरों से क्या उम्मीद कर सकता?

कभी-कभी दूसरों के लिए इतना दिया कि खुद को भूला दिया,
पर अब मैंने समझा कि खुद को समझना भी ज़रूरी था।
अब जब मैं खुद को प्राथमिकता देता हूँ,
तो दुनिया के लिए भी एक बेहतर इंसान बन जाता हूँ।

खुद को गले लगाना कोई आलस्य नहीं,
यह आत्म-सम्मान है, और यही असली सच्चाई है।
कभी "न" कहना भी जरूरी है, क्योंकि सिर्फ देने से नहीं चलता,
जब तक तुम खुद को ठीक से नहीं जियोगे, तब तक दूसरों को भी ठीक से नहीं दे पाओगे।



जो हुआ वो होना था


जो भी हुआ, वो होना था, ये किस्मत का खेल था,
दर्द और आंसू, उसका ही हिस्सा थे, ये वही सच्चा मेल था।

तुम्हें मौका मिला खुद को साबित करने का,
लेकिन उसका कीमत है ये दर्द और ग़म का सहना।

जो करोगे तुम, उस दर्द से, वही तय करेगा,
अगर तुम उसे नफरत और ग़ुस्से से भरोगे, तो वो तुम्हें निगल जाएगा।

अगर उसे इंजन बना लो, और अपनी ताकत में बदल दो,
तो वो दर्द तुम्हें अजेय बना देगा, हर मुश्किल को पार कर दो।

क्योंकि दर्द वही है,
फर्क सिर्फ इतना है, तुम उसे कैसे झेलते हो।


अपनी क्षमता को व्यर्थ न जाने दो

क्यों रुकूं मैं, जब राहें बुला रही हैं, क्यों थमूं मैं, जब हवाएं गा रही हैं। यह डर, यह संशय, यह झूठा बहाना, इनसे नहीं बनता किसी का जमाना। आध...