व्लादिमीर इलिच लेनिन के प्रसिद्ध ग्रंथ *"क्या करना चाहिए?"* में, उन्होंने रूस में समाजवादी आंदोलन के भीतर व्याप्त समस्याओं और गलत धारणाओं को उजागर किया और समाजवाद के सिद्धांतों को सही दिशा देने के लिए आवश्यक कदमों का वर्णन किया। इस लेख में, उन्होंने विशेष रूप से एक बडी समस्या पर ध्यान दिया – जो था "आर्थिकता" (Economism) और इसके प्रभाव, और उसके परिणामस्वरूप जो विचारधारात्मक भ्रम उत्पन्न हो रहा था।
लेनिन ने *"आर्थिकतावाद"* को एक गंभीर खतरा माना, जो उस समय रूसी समाजवादी आंदोलन में व्याप्त था। यह एक प्रवृत्ति थी जो केवल श्रमिकों के दैनिक आर्थिक संघर्षों पर ध्यान केंद्रित करती थी, बिना किसी व्यापक राजनीतिक दृष्टिकोण के। यह आंदोलन राजनीतिक चेतना को पूरी तरह से नकारते हुए श्रमिकों को केवल अपने मौलिक आर्थिक अधिकारों के लिए संघर्ष करने की सलाह देता था। इस प्रवृत्ति को लेनिन ने "स्पॉन्टेनिटी" या स्वाभाविक प्रवृत्ति कहा, जो सीधे तौर पर पूंजीवाद के खिलाफ एक सशक्त राजनीतिक आंदोलन का निर्माण नहीं करती थी।
**आर्थिकता और उसकी जटिलताएँ**
लेनिन के अनुसार, आर्थिकतावाद ने उस समय के रूस में मजदूर वर्ग के राजनीतिक जागरण को दबा दिया था। उन्हें लगता था कि केवल आर्थिक संघर्ष, जैसे बेहतर वेतन और कार्य परिस्थितियों के लिए लड़ाई, समाजवादी क्रांति का मार्ग नहीं हो सकती। वे मानते थे कि समाजवादी आंदोलन को अपने कार्यों को पूरी तरह से राजनीतिक रूप से व्यवस्थित और समझदारी से संचालित करना चाहिए था। इस विचारधारा के तहत, जो लोग केवल श्रमिकों के "आधिकारिक" और "स्थायी" लाभों के बारे में सोचते थे, वे वास्तविक क्रांतिकारी परिवर्तन की दिशा से भटक रहे थे।
एक महत्वपूर्ण उदाहरण के रूप में लेनिन ने *"रूसी समाजवादी डेमोक्रेट्स"* और उनकी पत्रिका *"रैबोचाया मसल"* (Rabochaya Mysl) का जिक्र किया, जिसमें श्रमिकों के केवल आर्थिक संघर्षों पर ध्यान केंद्रित करने की प्रवृत्ति थी। उन्होंने यह भी संकेत किया कि जो लोग इस विचारधारा को अपना रहे थे, वे बगैर किसी सामाजिक और राजनीतिक संरचना के केवल अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए काम करने की कोशिश कर रहे थे, जिससे आंदोलन को एक दिशाहीन और संकीर्ण दृष्टिकोण मिला।
**"स्पॉन्टेनिटी" और उसकी असफलताएँ**
लेनिन ने यह भी उल्लेख किया कि आर्थिकतावाद के प्रभाव के कारण, राजनीतिक चेतना पूरी तरह से "स्पॉन्टेनिटी" या स्वाभाविक प्रवृत्तियों द्वारा अधीन हो गई थी। यानी, यह आंदोलन किसी विचारधारा या संगठन के बिना केवल स्वतः और स्वाभाविक रूप से बढ़ रहा था। इस "स्पॉन्टेनिटी" के परिणामस्वरूप, केवल एक संकीर्ण, आर्थिक दृष्टिकोण वाला संघर्ष विकसित हुआ था, जो केवल आर्थिक सवालों तक सीमित था और राजनीतिक क्रांति की दिशा में कोई ठोस प्रयास नहीं कर रहा था।
लेनिन के अनुसार, यह स्थिति अधिकतर पुराने क्रांतिकारियों की गिरफ्तारी और युवा "नई पीढ़ी" के आंदोलन में शामिल होने के कारण उत्पन्न हुई। इसने आंदोलन को एक अपरिपक्व और दिशाहीन स्थिति में ला दिया, क्योंकि युवा कार्यकर्ता अधिकतर केवल उन विचारों से परिचित थे, जो कानूनी प्रकाशनों में प्रकाशित होते थे, और उनके पास कोई ठोस क्रांतिकारी प्रशिक्षण नहीं था।
**बुर्जुआ वर्ग और श्रमिक वर्ग के बीच विचारधारा का संघर्ष**
लेनिन का यह भी कहना था कि अगर श्रमिक वर्ग केवल "आर्थिक संघर्ष" पर ध्यान केंद्रित करेगा, तो इसे आसानी से बुर्जुआ विचारधारा द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है। उन्होंने यह तर्क दिया कि आर्थिक संघर्षों को व्यापक राजनीतिक लक्ष्यों से जोड़ने की आवश्यकता है, ताकि श्रमिक वर्ग का आंदोलन केवल एक व्यापारिक यूनियन के रूप में न रह जाए।
लेनिन ने यह बताया कि आर्थिकतावाद ने समाजवादी सिद्धांत को कमजोर किया, क्योंकि यह केवल कार्यकर्ताओं को उनके तात्कालिक हितों की ओर मोड़ता था, जबकि व्यापक सामाजिक और राजनीतिक बदलाव की आवश्यकता थी। उन्होंने यह तर्क दिया कि यह आंदोलन जल्द ही "बुर्जुआ ट्रेड यूनियनिज़्म" का रूप ले सकता है, जो केवल श्रमिकों को उनके आर्थिक लाभों के बारे में सोचने के लिए प्रेरित करता है, बजाय इसके कि वे समाजवाद और क्रांति के लिए अपने संघर्षों को बढ़ाएं।
**निष्कर्ष: क्रांतिकारी संघर्ष की दिशा में लेनिन का दृष्टिकोण**
लेनिन ने *"क्या करना चाहिए?"* में एक स्पष्ट दृष्टिकोण प्रस्तुत किया कि समाजवादी आंदोलन को केवल एक आर्थिक संघर्ष के रूप में नहीं देखा जा सकता। इसके बजाय, यह एक समग्र राजनीतिक और सामाजिक संघर्ष होना चाहिए, जो पूंजीवाद को समाप्त करने और एक क्रांतिकारी समाज की स्थापना की दिशा में काम करें।
उन्होंने यह भी बताया कि एक मजबूत क्रांतिकारी पार्टी की आवश्यकता है, जो विचारधारात्मक रूप से सशक्त हो और समाज के विभिन्न वर्गों को इस संघर्ष में शामिल कर सके। उनका यह मानना था कि केवल मजदूरों के आर्थिक मुद्दों को लेकर आंदोलन चलाना भविष्य में किसी बड़े परिवर्तन का कारण नहीं बनेगा, बल्कि इसके लिए व्यापक सामाजिक-राजनीतिक दृष्टिकोण और रणनीति की जरूरत है।
लेनिन का यह दृष्टिकोण आज भी क्रांतिकारी आंदोलनों के लिए एक महत्वपूर्ण गाइडलाइन है। उन्होंने दिखाया कि समाजवादी आंदोलन को केवल सिद्धांतिक या आर्थिक संघर्षों से नहीं, बल्कि सशक्त राजनीतिक आंदोलन और सामाजिक जागरूकता से आकार लिया जा सकता है।
No comments:
Post a Comment
Thanks