छतरी का आलिंगन



बारिश जब थम जाए, छतरी बोझ लगने लगे,  
वफ़ा की राहों में, नफ़रत की खुशबू बहे।  
जब जरूरत हो छतरी की, फिर खोजेंगे सब,  
पर उस वक्त तक, क्या खो गई वो छतरी, दाब में दब।

छतरी तो वहीं है, बस नज़दीकियों की दूरियां बढ़ी,  
उसने तो हमेशा दी थी, पर छूटी हर घड़ी।  
जिसने दिया सहारा, उसका क्या हुआ एहसास?  
अब वो छतरी फिर न आएगी, ये है मन का उदास।

हर मुस्कान का रंग नहीं, सच का हर रंग है नहीं,  
कभी-कभी ये दिखती, सिर्फ जलन का अंग है यही।  
हर वार का जवाब, ज़रूरी है फिर से समझना,  
इस दुनिया का संतुलन, इसी में है खुद को बांधना।

छतरी की कहानी में, हमें ये समझना है,  
जो भी छुपा हो भीतर, वो हमेशा बनता रहना है।  
सच्ची वफ़ा की पहचान, ना हो एक पल की बात,  
उसकी गरिमा में है सदा, प्यार और सुरक्षा की मात।

---


प्रेम ईश्वर का संदेश।

जब प्रेम से वासना और आसक्ति को हटा दिया जाए,
जब प्रेम शुद्ध, निर्दोष, निराकार हो जाए,
जब प्रेम में केवल देना हो, कोई माँग न हो,
जब प्रेम एक सम्राट हो, भिखारी न हो,
जब किसी ने आपके प्रेम को स्वीकार कर लिया हो
 और आप खुश हों,

तो प्रेम का स्वरूप कुछ ऐसा हो:

प्रेम वो है, जिसमें बस देना ही देना हो,
प्रेम वो है, जिसमें किसी अपेक्षा की जगह न हो।
जब न हो कोई शर्त, न हो कोई मांग,
बस प्रेम में हो अपनापन और विश्वास का रंग।

शुद्ध हो जैसे गंगा का जल, निर्मल और पवित्र,
प्रेम का स्पर्श हो, जैसे शीतल पवन का मित्र।
न हो कोई भय, न हो कोई संकोच,
प्रेम की भाषा हो, बस प्रेम का ही बोझ।

हर धड़कन में बस प्रेम का नाम हो,
हर साँस में बस प्रेम की सुगंध हो।
जैसे फूल खिलता है बगिया में हर रोज़,
प्रेम का एहसास हो, हर पल और हर रोज़।

प्रेम में हो जब सच्चाई और निष्कलंकता,
तब प्रेम का मार्ग हो स्वर्ग की ओर संकता।
जब हो केवल देना और न हो कोई चाह,
तब प्रेम की दुनिया हो, जैसे एक पवित्र राह।

प्रेम का सम्राट हो, जब मन का राज,
तब प्रेम का ही हो, हर दिन और हर रात।
न हो कोई छल, न हो कोई प्रपंच,
तब प्रेम हो जैसे, ईश्वर का संदेश।

निश्छल प्रेम की परिभाषा


जब प्रेम से हो हट जाएँ,
आसक्ति और आवेग,
हो प्रेम शुद्ध, निर्दोष, निराकार,
हो बस एक दान, न कोई मांग।

प्रेम हो सम्राट, भिक्षुक नहीं,
जब मिले खुशी किसी के स्वीकार से,
प्रेम बने शाश्वत, शाश्वत सत्य,
करे केवल देना, ना लेना कभी।

उस निर्मल प्रेम की महिमा हो,
जो हो सागर के समान विशाल,
जो बहे निश्छल, निर्बाध,
हो प्रेम की भाषा, अनमोल और निर्मल।

हर दिल में जब प्रेम हो ऐसा,
तो जग हो स्वर्ग समान,
मिट जाएं सारी द्वेष-भावनाएं,
प्रेम की हो बस एक ही पहचान।

नीरव निश्छल प्रेम


जब तुम प्रेम से हटाओ वासना और मोह,
जब तुम्हारा प्रेम हो पवित्र, निष्कलंक, निराकार।
जब तुम प्रेम में केवल दो, मांगो नहीं कुछ और,
जब प्रेम हो केवल दान, न हो कोई व्यापार।

जब प्रेम हो सम्राट, भिक्षुक नहीं,
जब तुम खुश हो क्योंकि किसी ने तुम्हारा प्रेम स्वीकार किया।
जब प्रेम की धारा बहे बिना किसी अपेक्षा के,
जब प्रेम हो परम आनंद का अद्वितीय सार।

तब ही तुम जान पाओगे प्रेम का सच्चा अर्थ,
तब ही तुम्हारा हृदय होगा सच्चे प्रेम से परिपूर्ण।
तब तुम जानोगे कि प्रेम है स्वर्गिक अमृत,
जो सिखाता है हमें, जीवन का सच्चा मूल्य, सम्पूर्ण।

प्रेम की बातें

निश्छल प्रेम की बातें हैं अनमोल,
जब छूट जाएं वासना और मोह के जाल,
निर्मल हो प्रेम, शुद्ध और निर्दोष,
न हो आकार, न हो कोई खोज।

जब प्रेम केवल देना हो,
न कोई माँग, न कोई रोक,
जब प्रेम बने सम्राट, न हो भिखारी,
तब ही सच्चे प्रेम की हो जयकारी।

खुशियों की छांव में हो बसेरा,
क्योंकि किसी ने स्वीकारा तुम्हारा प्रेम सवेरा।
नहीं चाहें प्रतिदान, न हो कोई उलाहना,
सिर्फ प्रेम की धारा में बहता रहे मन का क़ाफ़िला।

आओ प्रेम की इस राह पर चलें,
निष्काम, निष्कपट प्रेम में डूबें,
सच्चे हृदय से प्रेम करें सब,
तो ही मिलेगा जीवन का सच्चा अनुभव।

सकारात्मकता का सृजन: ओशो की दृष्टि से एक कहानी


हम सभी के जीवन में ऐसे क्षण आते हैं, जब चुनौतियाँ पहाड़ जैसी लगती हैं। लेकिन इन्हीं चुनौतियों के बीच कहीं न कहीं, आशा और सकारात्मकता का एक दीप जलता है। ओशो ने हमें सिखाया कि जीवन की हर कठिनाई के भीतर एक अवसर छिपा होता है।  

ओशो की बात याद आती है—"अंधकार से मत लड़ो, बस एक दीप जलाओ।"  

यह बात एक छोटी कहानी से और भी स्पष्ट होती है:

**कहानी: दो भाइयों की सोच**  

एक बार दो भाई थे। दोनों का बचपन गरीबी और संघर्ष में बीता। बड़े भाई ने जीवन की कठिनाइयों को देखकर सोचा, "जीवन में कुछ नहीं रखा है, सब बेकार है।" उसने हार मान ली और अपने जीवन को नकारात्मक सोच में डूबा दिया।  

वहीं छोटे भाई ने वही कठिनाइयाँ देखीं, लेकिन उसकी सोच अलग थी। उसने सोचा, "अगर मैं इन हालातों में रहकर भी कुछ अच्छा कर सकता हूँ, तो शायद यही मेरी जीत होगी।" वह रोज़ मेहनत करता रहा, सकारात्मकता को अपना मंत्र बनाकर।  

समय बीता, और जहाँ बड़ा भाई अपने ही जीवन से निराश था, वहीं छोटा भाई अपने जीवन में सफलता और संतोष पा चुका था।  

**संस्कृत श्लोक**  
**"यथा दृष्टिः तथा सृष्टिः।"**  
(जैसी आपकी दृष्टि होगी, वैसी ही आपकी सृष्टि होगी।)

यह श्लोक हमें यही सिखाता है कि हमारी सोच ही हमारे जीवन की दिशा तय करती है।  

**ओशो का विचार**  
ओशो कहते हैं, "तुम्हारी सोच ही तुम्हारा संसार बनाती है। अगर तुम सोचो कि जीवन सुंदर है, तो हर ओर तुम्हें सुंदरता ही दिखाई देगी। लेकिन अगर तुम नकारात्मकता को चुनते हो, तो वही तुम्हारी वास्तविकता बन जाएगी।"

इस कहानी में छोटे भाई ने जीवन की चुनौतियों में भी आशा और सकारात्मकता को देखा। यह दृष्टिकोण उसे जीवन में आगे बढ़ने में मदद करता है।  

ओशो हमें यही सिखाते हैं—**अपने मन को विशाल बनाओ**। जीवन की हर परिस्थिति में कुछ नया सीखने और आगे बढ़ने का अवसर खोजो। सकारात्मकता सिर्फ एक सोच नहीं, बल्कि जीवन जीने का तरीका है।  

---


अपनी क्षमता को व्यर्थ न जाने दो

क्यों रुकूं मैं, जब राहें बुला रही हैं, क्यों थमूं मैं, जब हवाएं गा रही हैं। यह डर, यह संशय, यह झूठा बहाना, इनसे नहीं बनता किसी का जमाना। आध...