शून्य






सबसे पीछे से जो शुरू हो वही शून्य है.

शून्य का मतलब कुछ भी नही होना है

और शून्य का मतलब सब कुछ होना भी है

शून्य से हम शूरू करते हैं

और खत्म भी हम शून्य पर होते हैं

यानि शून्य अतं हैऔर अंत हिन भी है

शून्य पर हम रह नही सकते

मगर शून्य के बिना भी हम रह नही सकते

शून्य जन्म होना है और

शून्य मृत्यु होना भी है




निर्णय और नतीजों की कला



मेरी सफलता,
मेरे फैसलों की धार पर टिकी है।
जीवन की हर मोड़ पर,
एक निर्णय खड़ा होता है,
जिसे लेना या छोड़ना,
सिर्फ मेरा अधिकार है।
कभी सही, कभी गलत,
फिर भी मैं चलता हूँ,
क्योंकि रुकना,
हार मानने जैसा लगता है।

लेकिन खुशी?
वो नतीजों की मोहताज नहीं।
मैंने सीखा है,
कि नतीजों की चिंता छोड़ देना
एक कला है,
जो सुकून का रास्ता दिखाती है।
क्योंकि जब मैं नतीजों से परे होता हूँ,
तभी मैं खुद से जुड़ पाता हूँ।

मैंने फैसलों की शक्ति को अपनाया,
पर नतीजों से खुद को मुक्त किया।
हर कदम पर,
जीवन ने मुझे सिखाया,
कि कोशिश करना मेरा कर्तव्य है,
पर हर नतीजा
मेरे नियंत्रण से बाहर है।

अब, मैं फैसले लेता हूँ,
जिम्मेदारी से,
पर उन्हें जकड़कर नहीं रखता।
मैंने अपने मन को आज़ाद किया,
उस भार से जो नतीजों ने दिया।

क्योंकि खुशी वही है,
जब मैं अपनी राह चुनूँ,
और उस पर चलता जाऊँ,
बिना डर के,
बिना नतीजों की परवाह के।
सफलता मेरे फैसलों की साथी है,
और खुशी,
मेरी आत्मा की आज़ादी।


गणित का रहस्य



हमने गणित को नहीं "आविष्कार" किया,
यह तो पहले से अस्तित्व में था, बस हमने इसे "खोजा"।
संख्याएँ, जो हम उपयोग करते हैं,
वे गणित के रूपों को समझाने के लिए बने थे।

अगर मैं कोई परग्रही प्रजाति होता,
तो शायद 1, 2, 3 जैसे अंक न होते,
बल्कि वे कुछ और होते,
शायद अनजाने आकारों में हमारी समझ के रूप में।

गणित तो ब्रह्मांड की भाषा है,
जो हर तत्व, हर गति, हर रूप में बसी है।
हमने बस इसे अपने तरीके से देखा,
अपने अनुभवों के अनुसार इसे समझने की कोशिश की।

“अहं” में छिपा यह ज्ञान,
हमारे भीतर उस अनंतता का एक अंश है।
हमने संख्याओं से इसे व्यक्त किया,
लेकिन गणित तो बिना शब्दों के, स्वयं अपनी पहचान रखता है।

अगर हम परग्रही होते,
तो हमारी समझ और उसके प्रतीक अलग होते,
लेकिन गणित का सत्य कभी बदलता नहीं,
वह एक स्थिर, अनंत सत्य है, जिसे हम केवल महसूस कर सकते हैं।

तो नहीं, गणित कोई नया आविष्कार नहीं,
यह तो सृष्टि का स्वाभाविक हिस्सा है।
हमने इसे केवल अपने दृष्टिकोण से देखा,
और फिर संख्याओं और रूपों के माध्यम से इसे प्रकट किया।


तुम्हें जानने की चाह



मैं चाहता हूँ तुम्हें देखना,
तुम्हारी आवाज़ को पहचानना।
जब तुम मोड़ से गुजरते हो,
मुझे पहले ही तुम दिख जाओ।

जब मैं कमरे में प्रवेश करूँ,
तुम्हारी खुशबू मुझसे मिल जाए,
तुम्हारे पाँव की हल्की चाप,
तुम्हारे कदमों का मुलायम चलना।

तुम्हारे होंठों को पहचानना,
जैसे वे जुड़ते हैं, फिर थोड़ा-सा खुलते हैं,
जब मैं तुम्हारे पास आता हूँ,
तुम्हें चुमने के लिए, नज़दीक जाता हूँ।

मैं जानना चाहता हूँ, उस आनंद को,
जब तुम धीरे से कहते हो "अधिक"—
तुम्हारी ख़ुशी, तुम्हारा रहस्य,
सभी मुझे हर दिन नयापन देते हैं।

साथ जीने की यह इच्छा,
जो केवल "साक्षात्कार"  होती है।
जब हम दोनों मिलकर एक-दूसरे को महसूस करते हैं,
वह प्रेम, वह योग जो बेजोड़ होता है।

तुमसे जुड़ने की यह चाह,
एक असीमित प्यास की तरह है।
मैं जानना चाहता हूँ तुम्हारे हर रूप को,
हर अहसास को, जैसे जीवन का असली रस है।


अपनी क्षमता को व्यर्थ न जाने दो

क्यों रुकूं मैं, जब राहें बुला रही हैं, क्यों थमूं मैं, जब हवाएं गा रही हैं। यह डर, यह संशय, यह झूठा बहाना, इनसे नहीं बनता किसी का जमाना। आध...