आज का विश्व भौतिकता के दृष्टिकोण से संचालित हो रहा है। शरीर, बाहरी मन और अहंकार की सीमाओं में बंधा मानव, व्यक्तिगत सुख, धन और दूसरों पर शक्ति प्राप्त करने की असीमित लालसा में लिप्त है। इस दृष्टिकोण से हमारे नए उच्च-तकनीक आविष्कार भी विनाशकारी शक्तियों द्वारा आसानी से हाइजैक किए जा सकते हैं। यह एक खतरनाक मार्ग है जो हमें आपदाओं की ओर ले जा सकता है।
### भौतिकता का आधिपत्य
वर्तमान समाज में भौतिकता का आधिपत्य हर जगह देखा जा सकता है। हम अपने जीवन को सुख-सुविधाओं से भरने की कोशिश में लगे रहते हैं। इसी संदर्भ में भगवद गीता का श्लोक बहुत सटीक बैठता है:
**"ध्यायतो विषयान् पुंसः संगस्तेषूपजायते।
संगात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते॥"**
(भगवद गीता 2.62)
अर्थ: जब मनुष्य विषयों का चिंतन करता है, तो उनमें आसक्ति उत्पन्न होती है। आसक्ति से कामना उत्पन्न होती है और कामना से क्रोध उत्पन्न होता है।
### अहंकार और उच्च-तकनीक
भौतिकता के साथ अहंकार का मेल उच्च-तकनीक को विनाशकारी दिशा में ले जा सकता है। उदाहरण के लिए, हमारे पास संचार, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, और रोबोटिक्स जैसे क्षेत्र में अद्वितीय प्रगति है। परंतु, यदि यह तकनीक स्वार्थ और शक्ति की लालसा में लिप्त लोगों के हाथों में चली जाए, तो इसके दुरुपयोग की संभावना अत्यधिक बढ़ जाती है।
**"बड़े-बड़े महलों की तासीर से,
छोटे-छोटे लोगों का दिल बड़ा होता है।
खुशबू बिखेरने से खुशबू मिलती है,
जमीन पर कुछ उगाने से खेत हरा होता है।"**
यह काव्यांश इस बात को दर्शाता है कि कैसे बाहरी संपत्ति और भौतिक सुख-सुविधाएं आत्मिक शांति और संतोष की तुलना में अस्थायी होती हैं। वास्तविक समृद्धि और शांति आंतरिक विकास और प्रेम से आती है, न कि बाहरी दिखावे से।
### समाधान
इस समस्या का समाधान आध्यात्मिकता और संतुलन में निहित है। हमें अपने भीतर की ओर देखने की आवश्यकता है और आत्म-साक्षात्कार की ओर अग्रसर होना चाहिए। उपनिषदों में कहा गया है:
**"सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्म।"**
(तैत्तिरीय उपनिषद् 2.1)
अर्थ: सत्य, ज्ञान और अनंत ब्रह्म हैं।
### निष्कर्ष
भौतिकता और अहंकार के आधिपत्य से हमें सच्चे ज्ञान और आत्म-साक्षात्कार की ओर बढ़ना चाहिए। केवल तभी हम एक संतुलित और सुरक्षित समाज का निर्माण कर सकते हैं। हमें तकनीकी प्रगति का उपयोग मानवता के कल्याण के लिए करना चाहिए, न कि विनाशकारी उद्देश्यों के लिए।
### उपसंहार
आज का युग भौतिकता के अधीन है, लेकिन हमें इस दृष्टिकोण को बदलने की आवश्यकता है। हमें आत्मिकता और प्रेम की दिशा में अग्रसर होना चाहिए, ताकि हम एक सुखी, समृद्ध और सुरक्षित भविष्य का निर्माण कर सकें।
**"राह में राही जब भी भटक जाता है,
मंजिल उसे तभी मिलती है जब वो खुद को पहचानता है।"**
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