भगवान, नृशंसता, और मानवता: विचारों का संग्राम

मानव समाज में धार्मिक और दार्शनिक विचारों के बीच यह अनन्त युद्ध हमेशा से चला आ रहा है। धर्म के नाम पर अनेक अत्याचार और नृशंसताओं का रहस्यमय रूप से अध्ययन किया गया है, जबकि नास्तिकता की धारणा न्यायवाद, वैज्ञानिक धारणाओं, और आधुनिकता के नाम पर प्रमाणित होती है।

धर्म की दृष्टि से, भगवान एक अदृश्य शक्ति होते हैं जो सृष्टि का पालन-पोषण करते हैं। उनकी स्वर्ग और नरक की दृष्टि मानव जीवन को एक अनंत अनुभव के रूप में देखते हैं, जहां उनका कर्म उनके भविष्य को निर्धारित करता है।

नास्तिक विचारधारा का उद्देश्य धार्मिक अविश्वास के प्रति अनुवाद और स्वतंत्र विचार को प्रोत्साहित करना होता है। वे भगवान या ईश्वर के अस्तित्व में अविश्वास करते हैं और उन्हें मानवता की आत्मनिर्भरता और समानता के बीच की भूमिका में देखते हैं।

हिटलर और अन्य ऐसे अत्याचारी नेताओं के उदाहरण नास्तिकों द्वारा धर्म के अन्ध अनुसरण के प्रति आपत्ति को दर्शाते हैं। वे आत्मविश्वास के नाम पर विशेष अधिकार और अन्याय को प्रमोट करते हैं, जो धार्मिक या नास्तिक विचारधारा की नहीं, बल्कि व्यक्तिगत अंधाधुंध की सूचना देते हैं।

इस प्रकार, यह उचित है कि हम मानवता के समान अधिकार, सहिष्णुता, और समाजिक न्याय की प्रोत्साहना करें, चाहे हम धर्मिक हों या नहीं। एक समृद्ध और संवेदनशील समाज के निर्माण में हम सभी का योगदान होना चाहिए, जो भगवान या नहीं, हमारे नृशंस अभिव्यक्तियों के खिलाफ खड़ा हो।

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