लेनिन की पुस्तक *What Is To Be Done?* में "स्वतःस्फूर्तता" (Spontaneity) और "चेतना" (Consciousness) के बीच के संबंध को गहराई से समझाया गया है।

भाग 1: स्वतःस्फूर्तता बनाम चेतना**  

**परिचय:**  
लेनिन की पुस्तक *What Is To Be Done?* में "स्वतःस्फूर्तता" (Spontaneity) और "चेतना" (Consciousness) के बीच के संबंध को गहराई से समझाया गया है। यह चर्चा न केवल समाजवादी आंदोलन के लिए बल्कि व्यापक राजनीतिक सिद्धांतों के लिए भी महत्वपूर्ण है। लेनिन का मानना था कि श्रमिक वर्ग की स्वतःस्फूर्त गतिविधियां समाजवादी चेतना का प्रारंभिक रूप हो सकती हैं, लेकिन इसे क्रांतिकारी दिशा देने के लिए एक सचेत नेतृत्व आवश्यक है।  

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#### **स्वतःस्फूर्तता और श्रमिक आंदोलन का प्रारंभिक चरण**  
लेनिन ने स्पष्ट किया कि 19वीं शताब्दी के अंत में रूस में श्रमिक आंदोलनों का उदय स्वतःस्फूर्त रूप से हुआ था।  
- **स्वतःस्फूर्तता का स्वरूप:**  
  श्रमिकों ने अपने उत्पीड़न और शोषण के खिलाफ विद्रोह किया।  
  - **उदाहरण:** 1896 का *सेंट पीटर्सबर्ग औद्योगिक युद्ध* (Industrial War), जिसने पूरे रूस में हड़तालों की लहर पैदा की।  
  - ये हड़तालें मुख्य रूप से मजदूरी बढ़ाने, काम के घंटे कम करने, और बेहतर परिस्थितियों की मांग से प्रेरित थीं।  

- **स्वतःस्फूर्तता की सीमाएँ:**  
  - ये गतिविधियां अधिकतर "व्यापारिक संघ संघर्ष" (trade union struggle) तक सीमित थीं।  
  - श्रमिक वर्ग केवल अपने तत्कालिक आर्थिक हितों को समझने में सक्षम था।  
  - उनके पास राजनीतिक और सामाजिक संरचना की व्यापक समझ नहीं थी।  

#### **चेतना का प्रारंभिक रूप**  
लेनिन ने कहा कि इन आंदोलनों ने "चेतना के भ्रूण" (embryonic consciousness) को जन्म दिया।  
- **चेतना का अर्थ:**  
  - मजदूर यह समझने लगे थे कि उनका संघर्ष व्यक्तिगत या एक क्षेत्र तक सीमित नहीं है।  
  - उन्होंने महसूस किया कि उनके शोषण का कारण पूंजीवादी व्यवस्था है।  
- **स्वतःस्फूर्तता से चेतना की ओर यात्रा:**  
  - यद्यपि इन आंदोलनों ने वर्गीय संघर्ष की शुरुआत की, वे समाजवादी चेतना (Social-Democratic consciousness) नहीं बन सके।  

#### **चेतना का निर्माण बाहरी तत्वों से होता है**  
लेनिन का सबसे महत्वपूर्ण तर्क यह था कि श्रमिक वर्ग अपनी शक्ति से केवल "व्यापारिक चेतना" (trade union consciousness) विकसित कर सकता है।  
- **व्यापारिक चेतना:**  
  - इसमें मजदूर संघ बनाना, मालिकों के खिलाफ संघर्ष करना, और श्रमिक कानूनों की मांग करना शामिल है।  
  - यह चेतना केवल आर्थिक संघर्ष तक सीमित रहती है।  

- **समाजवादी चेतना का अभाव:**  
  - श्रमिक वर्ग केवल आर्थिक मुद्दों तक सीमित रहता है और यह नहीं समझता कि उनका संघर्ष पूरे पूंजीवादी व्यवस्था के खिलाफ है।  
  - समाजवादी विचारधारा को श्रमिकों तक "बाहरी रूप से" लाना पड़ता है।  

#### **बौद्धिक वर्ग की भूमिका**  
लेनिन ने यह भी कहा कि समाजवादी विचारधारा श्रमिक वर्ग के अंदर से उत्पन्न नहीं होती है।  
- **मूल स्रोत:**  
  - समाजवादी विचारधारा का उद्भव दार्शनिक, ऐतिहासिक, और आर्थिक सिद्धांतों से हुआ, जिसे संपन्न वर्गों के शिक्षित बौद्धिकों ने विकसित किया।  
  - **उदाहरण:** कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स।  
- **बाहरी योगदान:**  
  - बौद्धिक वर्ग ने मजदूरों को यह सिखाया कि उनका संघर्ष केवल वेतन और काम की परिस्थितियों के लिए नहीं है, बल्कि पूरे पूंजीवादी ढांचे को बदलने के लिए है।  

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