#### **क्रांतिकारी नेतृत्व का महत्व**
लेनिन ने कहा कि स्वतःस्फूर्तता को एक क्रांतिकारी आंदोलन में बदलने के लिए समाजवादी नेताओं की आवश्यकता है।
- **नेतृत्व की भूमिका:**
- श्रमिकों के आंदोलनों को क्रांतिकारी विचारधारा से जोड़ना।
- उन्हें यह सिखाना कि उनका संघर्ष केवल आर्थिक नहीं, बल्कि राजनीतिक है।
- श्रमिकों को यह समझाना कि उनके हित पूंजीवाद के साथ मेल नहीं खाते।
- **रणनीतिक दृष्टिकोण:**
- नेतृत्व को आंदोलन को एक "व्यवस्थित संघर्ष" (systematic struggle) में बदलने की आवश्यकता है।
- नेतृत्व का उद्देश्य मजदूर वर्ग को "क्रांति के लिए तैयार" करना होना चाहिए।
#### **स्वतःस्फूर्तता बनाम क्रांतिकारी चेतना**
लेनिन ने कहा कि "स्वतःस्फूर्तता" एक प्रारंभिक चरण है, लेकिन इसे "क्रांतिकारी चेतना" में परिवर्तित करना आवश्यक है।
- **स्वतःस्फूर्तता की सीमाएँ:**
- यह आंदोलन को असंगठित और कमजोर बना सकती है।
- इसके परिणामस्वरूप संघर्ष केवल सुधारों तक सीमित रह सकता है।
- **क्रांतिकारी चेतना:**
- यह श्रमिक वर्ग को यह सिखाती है कि उनका अंतिम लक्ष्य समाजवादी व्यवस्था की स्थापना है।
- यह संघर्ष को राजनीतिक दिशा प्रदान करती है।
#### **राजनीतिक संगठन की आवश्यकता**
लेनिन ने जोर दिया कि समाजवादी चेतना को व्यवस्थित करने और आंदोलन को सही दिशा में ले जाने के लिए एक मजबूत राजनीतिक संगठन की आवश्यकता है।
- **संगठन के उद्देश्य:**
- मजदूर वर्ग को शिक्षित करना और संगठित करना।
- पूंजीवाद के खिलाफ वर्गीय संघर्ष को तेज करना।
- समाजवादी क्रांति के लिए रणनीति तैयार करना।
- **उदाहरण:** रूस की बोल्शेविक पार्टी, जिसने श्रमिक वर्ग को संगठित किया और क्रांति की दिशा में अग्रसर किया।
#### **स्वतःस्फूर्तता को क्रांति में कैसे बदला जाए?**
1. **श्रमिकों को शिक्षित करना:**
- समाजवादी विचारधारा का प्रचार करना।
- श्रमिकों को यह समझाना कि उनका शोषण केवल आर्थिक नहीं, बल्कि राजनीतिक है।
2. **संगठन बनाना:**
- मजदूर संघों को राजनीतिक संगठनों में बदलना।
- आंदोलन को एक उद्देश्यपूर्ण दिशा देना।
3. **नेतृत्व विकसित करना:**
- क्रांतिकारी नेताओं को प्रशिक्षित करना।
- श्रमिकों को नेतृत्व प्रदान करना।
लेनिन की *What Is To Be Done?* समाजवादी आंदोलन की एक गहरी समझ प्रदान करती है।
- यह स्पष्ट करती है कि स्वतःस्फूर्तता, यद्यपि महत्वपूर्ण है, लेकिन यह क्रांति के लिए पर्याप्त नहीं है।
- समाजवादी चेतना को श्रमिक वर्ग तक पहुंचाने के लिए एक बौद्धिक और क्रांतिकारी नेतृत्व की आवश्यकता है।
लेनिन का तर्क आज भी प्रासंगिक है, जब सामाजिक आंदोलनों को राजनीतिक दिशा की आवश्यकता होती है। यह पुस्तक एक महत्वपूर्ण संदेश देती है: बिना चेतना और संगठन के, स्वतःस्फूर्त आंदोलन क्रांति में नहीं बदल सकते।
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