Monday 22 September 2014

छांव



            छांव
छांव है ये धूप से बनी
धूप वो जिसने तन को जला दिया
छांव है ये मन के आंगन का
जिसने जलते तन को बूझा दिया

उजले फूलों पर जो काली स्याही पोती
फूलों को खिलने से पहले ही मूरझा दिया
    छांव है ये उसी पेड़ की
 जिसने मूरझे फूलों को फिर से महका दिया
 छांव है मन के आंगन का
जिसने जलते तन को बूझा दिया

पेड़ था एक
जिसकी जड़ो को जहर से सींचा गया
जहर पीकर भी वो पनप गया
छांव है उसी पेड़ की
जिसकी शाखाओं को काटा गया
छांव हे मन के आंगन का
जिसने जलते तन को बूझा दिया

सूरज तो सबका है
फिर क्यों उसकी धूप में कोई जल गया
चांद सा चेहरा तो सबका है
 फिर क्यों किसी में दाग लग गया
छांव है उस रोशनी की
जिसने सारे अंधियारे को मिटा दिया
छांव है ये मन के आंगन का

जिसने जलते तन को बूझा दिया     


   

No comments:

Post a Comment

thanks

दीप जले तो जीवन खिले

अँधेरे में जब उम्मीदें मर जाएं, दुखों का पहाड़ जब मन को दबाए, तब एक दीप जले, जीवन में उजाला लाए, आशा की किरण जगमगाए। दीप जले तो जीवन खिले, खु...