अनन्तता में बाध्य नहीं: परमात्मन का अनुभव


संसार की गहराइयों में, वैज्ञानिक तथ्यों और गणनाओं के अलावा, हमारी आत्मा में एक अद्वितीयता छिपी है - जो अनंत, अपार, और अगोचर है। यह परमात्मा, हमारी आत्मा का स्वरूप, सभी प्रकार से परे है। यह न केवल किसी यंत्र या युक्ति द्वारा जाना जा सकता है, बल्कि यह स्वयं अपने शुद्ध चेतना के प्रकाश में स्वतःसिद्ध है।

**श्रुति में कहा गया है:**

*"नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।  
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः॥"*

इस श्लोक से स्पष्ट होता है कि परमात्मा न तो किसी हथियार से काटा जा सकता है, न ही आग से जला सकता है, न जल से गीला किया जा सकता है, और न ही हवा से सूखा किया जा सकता है। यह सब परमात्मा की अद्वितीयता को दर्शाता है, जो समस्त भौतिक और मानसिक परिमाणों से परे है।

**आत्मज्ञान का मार्ग:**

यद्यपि परमात्मा को यथार्थ अनुभव करने का मार्ग अत्यंत सूक्ष्म और सुखद है, तथापि ध्यान और ध्यान में चित्त को शांत करके, यह अनुभव संभव है। जब हमारा मन विचारों से रहित हो जाता है, तब परमात्मा का साक्षात्कार स्वतः ही होता है।


*"मन के शोर को छोड़,  
अपनी आत्मा में समाहित हो जा।  
परमात्मा के अनंत आकार में,  
अपने स्वयं को पहचान ले विश्राम से।"*



एक व्यक्ति जो अन्धेरे में फँसा हुआ था, उसने दीपक की रोशनी में अपने आसपास को देखा। इसी तरह, हमारी आत्मा भी मन के अंधकार से परे, शांति और प्रकाश की अनुभूति कर सकती है।

 मैने देखा कि परमात्मा का अनुभव सीधा होने वाला है, जो सभी व्यक्तियों में विद्यमान है, और जिसे हम मन की शांति के माध्यम से स्पष्टता से अनुभव कर सकते हैं।

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