The concept of time in Hinduism

**हिन्दू धर्म में समय की अवधारणा और उसकी महत्ता**

हिन्दू धर्म में समय को "काल" कहा जाता है, जो समय और मृत्यु दोनों का प्रतीक है। यह अवधारणा यह दर्शाती है कि समय और मृत्यु अविभाज्य हैं और वे एक दूसरे के पूरक हैं। काल को मृत्यु के देवता यम के रूप में भी दर्शाया गया है, जो मानव जीवन की अवधि का निर्धारण करते हैं।

### हिन्दू समय की अवधारणा

हिन्दू शास्त्रों में समय या "काल" को एक विनाशकारी शक्ति और सृष्टि के एक मौलिक सिद्धांत के रूप में वर्णित किया गया है। भगवद गीता (11.32) में, भगवान कृष्ण स्वयं को काल के रूप में पहचानते हैं और इसकी भूमिका को दुनिया के विनाश में महत्वपूर्ण बताते हैं। "काल" शब्द स्वयं मृत्यु और परिवर्तन की ओर अपरिहार्य गमन को दर्शाता है, जो भौतिक संसार की अस्थिरता को उजागर करता है।

### हिन्दू समय मापन

हिन्दू समय प्रणाली को विस्तृत और जटिल चक्रों में विभाजित किया गया है। एक "कल्प," जो ब्रह्मा का एक दिन है, 4.32 अरब मानव वर्षों के बराबर होता है। प्रत्येक कल्प को 1000 "महायुगों" में विभाजित किया गया है, और प्रत्येक महायुग में चार युग होते हैं:

1. **कृत युग (सत्य युग)**: 17,28,000 वर्ष
2. **त्रेता युग**: 12,96,000 वर्ष
3. **द्वापर युग**: 8,64,000 वर्ष
4. **कली युग**: 4,32,000 वर्ष

ये चक्र निरंतर दोहराए जाते हैं, जो सृष्टि, संरक्षण और प्रलय का एक अनवरत चक्र बनाते हैं।

### हिन्दू समय अवधारणा की श्रेष्ठता

#### 1. **समय की चक्रीय प्रकृति**:
पश्चिमी विचारधारा में समय की रैखिक प्रगति के विपरीत, हिन्दू धर्म में समय की चक्रीय अवधारणा ब्रह्मांड की पुनरावृत्ति की गहन समझ को दर्शाती है। ऋग्वेद (10.190.3) इस विचार को प्रकट करता है, जो दर्शाता है कि ब्रह्मांड की घटनाएं अनंत रूप से पुनरावृत्त होती हैं।

#### 2. **विस्तृत समय इकाइयाँ**:
हिन्दू समय मापन में सूक्ष्म और विशाल समय इकाइयों का समावेश होता है, जैसे "परमाणु" (60,750वां भाग एक सेकंड का) से "कल्प" (4.32 अरब वर्ष)। यह जटिल ढांचा समय के सूक्ष्म और विशाल पैमानों की गहन समझ को प्रदर्शित करता है।

### प्रलय

"प्रलय" का अर्थ है दुनिया का अंत, और इसे चार प्रकारों में विभाजित किया गया है:

1. **नित्य प्रलय**: दैनिक विश्राम और निद्रा का चक्र, जो मृत्यु तक विस्तृत होता है।
2. **नैमित्तिक प्रलय**: ब्रह्मा के एक दिन के अंत में होती है, जो भूः, भुवः और स्वः तीनों लोकों का विघटन करती है।
3. **महाप्रलय**: ब्रह्मा के 100 वर्षों के अंत में महान प्रलय, जो पूरे ब्रह्मांड का विनाश करती है।
4. **आत्यंतिक प्रलय**: अंतिम मुक्ति (मोक्ष) जब एक जीव (आत्मा) जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है।

### आधुनिक विज्ञान से तुलना

हिन्दू समय की अवधारणा आधुनिक वैज्ञानिक विचारों जैसे बिग बैंग और बिग क्रंच से मेल खाती है, जो ब्रह्मांड के सृजन और विनाश के चक्रीय स्वरूप का वर्णन करती हैं। समय की सापेक्षता भी हिन्दू कथाओं में दर्शाई गई है, जैसे ककुदमी और उनकी पुत्री रेवती की कहानी, जो ब्रह्मा लोक में केवल 20 मिनट बिताते हैं, जबकि धरती पर लाखों वर्ष बीत जाते हैं। यह कहानी आधुनिक भौतिकी के जुड़वाँ विरोधाभास को दर्शाती है, जिसमें उच्च गति से यात्रा करने वाला जुड़वाँ व्यक्ति स्थिर जुड़वाँ की तुलना में बहुत कम समय का अनुभव करता है, जिसके परिणामस्वरूप उनके बीच उल्लेखनीय आयु अंतर हो जाता है।

इस प्रकार, हिन्दू धर्म की समय की अवधारणा "काल" एक जटिल, चक्रीय प्रणाली को शामिल करती है जो आधुनिक वैज्ञानिक समझ से मेल खाती है, और इसके दार्शनिक और आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि को दर्शाती है।

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