जब दिल के भीतर
एक मौन सी पुकार उठती है,
कोई शब्द नहीं, कोई आवाज़ नहीं —
पर फिर भी सब कुछ बदल जाता है।
मैं समझ जाता हूँ —
अब समय है उठ खड़े होने का।
अब वो पुराने रिश्तों की दीवारें
जो सिर्फ नाम की थीं,
गिरानी होंगी।
कई बरसों से जिन खिड़कियों से
सिर्फ धूप की उम्मीद की,
वहाँ अंधेरों ने डेरा जमा लिया था।
अब मैं उन खिड़कियों को बंद करता हूँ,
और नई दीवारों में दरवाज़ा बनाता हूँ।
मुझे पता है —
नए पन्ने मेरा इंतज़ार कर रहे हैं।
उनमें मेरा नाम नहीं,
पर मेरी आत्मा की गूंज है।
उनमें वो कहानी है
जो अब तक दबी रही,
अब बोलना चाहती है,
छपना चाहती है —
सच बनकर।
मैंने गिराए हैं पुराने भ्रम,
पुरानी दीवारें,
पुरानी भूमिकाएँ —
जो मुझे छोटा करती थीं।
अब मैं अपने भीतर के दीप से
नया आलोक जलाता हूँ,
क्योंकि जो बीत गया —
वो बंद किताब है,
और अब जो आएगा —
वो मेरी कलम से लिखा जाएगा।
मैं डरता नहीं —
क्योंकि अब मैं जानता हूँ
कि दिल की खामोश पुकार
कभी झूठ नहीं बोलती।
जब वो कहता है —
"उठ, चल, बढ़,
क्योंकि तेरा समय आ गया है..."
तो मैं रुकता नहीं।
मैं चल पड़ता हूँ।
"जब दिल करे मौन इशारा —
तो समझ ले, तू तैयार है।
दीवारें गिरा, कहानी बना,
नया अध्याय, तुझे पुकारता है।"