धर्म और नास्तिकता: एक विचार



मानव इतिहास में धर्म और नास्तिकता का संघर्ष हमेशा से रहा है। धर्म के प्रति विश्वास और नास्तिकता के प्रति असहमति नए सवालों को उत्पन्न करते रहते हैं। आज के समय में, यह विवाद और तनाव काफी उच्च हैं, और लोग इस विषय पर विचार कर रहे हैं।

धर्म के ठेकेदारों के अनुसार, धर्म मनुष्य को उसके जीवन का मार्गदर्शन करता है और उसे आत्मश्रद्धा, शांति और समृद्धि का मार्ग दिखाता है। वे मानते हैं कि भगवान ने इस संसार को प्रेम और सहयोग के लिए बनाया है, और हमें उनकी आज्ञाओं का पालन करना चाहिए।

वहीं, नास्तिक विचारधारा वाले व्यक्ति संसार को वैज्ञानिक और तर्कात्मक दृष्टिकोण से देखते हैं। उन्हें धर्म के प्रति शंका और असहमति होती है, और वे आधुनिक विज्ञान और तकनीकी विकास को मानते हैं। धर्म की बजाय लॉजिक और प्रमाण के आधार पर उन्हें जीना अधिक प्राथमिक माना जाता है।

धर्म और नास्तिकता के बीच का विवाद आम रूप से समाज में असन्तोष और उत्सर्ग का कारण बनता है। धार्मिक समूहों और नास्तिकों के बीच संघर्ष के कारण, अक्सर समाज में विभाजन और असहमति दिखाई देती है।

जो लोग नास्तिक होते हैं, वे अक्सर आधुनिकता, समाजिक न्याय और मानविकी में विश्वास करते हैं। उन्हें धर्म का प्रति अनुप्राणन और अदालत के नाम पर हो रहे अत्याचार का सामना करना पड़ता है। इसके बजाय, वे अपने अनुभवों, तर्क और साक्षात्कारों पर विश्वास करते हैं।

इस तरह, धर्म और नास्तिकता के बीच का विवाद एक निरंतर चर्चा का विषय बना रहता है, जो हमें आत्मविश्वास, समझदारी और सहमति के माध्यम से समाधान निकालने के लिए प्रेरित करता है।

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