मेरे माता-पिता ने सिखाया, अच्छा होना है,
दूसरों की नज़र में सम्मानित, यही तो होना है।
उन्होंने कहा, "सच्चे इंसान बनो,"
लेकिन कभी न पूछा, "क्या तुम सच में वही हो?"
उनके विचारों में मैंने खुद को खो दिया,
जिन्हें मैंने आदर्श माना, उन पर ही निर्भर हो गया।
चाहे सही हो या गलत, मुझे दिखाना था अच्छा,
दूसरों की उम्मीदों में बसा मेरा पूरा सपना।
वे चाहते थे मैं समाज के अनुसार चलूं,
लेकिन क्या मैं कभी अपने दिल की आवाज़ सुन पाया?
कभी अपने सवालों का उत्तर नहीं पाया,
क्या यह अच्छाई थी, या बस एक दिखावा था?
उनकी नज़र में था हर कदम एक परीक्षा,
क्या मैं सही था, या बस दिखावा था सच्चा?
पर अब समझता हूँ, हर वो बात जो मुझे सिखाई,
वो शायद मुझे खुद से दूर ले जाने की राह थी, न कि मुझे सच्चा बनाने की।
मैं अब जानता हूँ, राजा बनने के लिए पैदा हुआ हूँ,
दूसरों की राय को खुद पर भारी न पड़ने दूँ।
मेरे माता-पिता ने मुझे अच्छाई का रास्ता दिखाया,
लेकिन अब मैं जानता हूँ, मैं खुद से सच्चा रहकर ही जीवन को समझ पाऊँगा।
वे मेरे आदर्श थे, लेकिन अब मुझे समझ है,
दूसरों के अनुसार अच्छा होने की बजाय,
मुझे अपनी पहचान से जुड़ा रहना है,
क्योंकि खुद से सच्चा रहकर ही हम अपनी असली शक्ति पा सकते हैं।
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