सच्चाई और अच्छाई का अंतर



"अच्छा बनने की चाहत" कभी दिखावा बन जाती है,
एक मास्क, जो छिपाता है अंदर की असली सच्चाई।
मैं खुद को दूसरों की उम्मीदों में ढालने लगा,
यह सोचकर कि यही रास्ता सही होगा, यही सबसे बड़ा काम होगा।

लेकिन जब मैंने भीतर झांका, तब समझा,
सच्ची अच्छाई तो कभी दिखावे में नहीं समाती।
यह तलाश है, दूसरों से तारीफ पाने की,
पर क्या ये मेरी असली पहचान है? या बस एक नकली कहानी है?

मैं जानता हूँ, असली ताकत मेरी क्रियाओं में है,
मेरे विचारों में नहीं, मेरे कामों में है।
यह दिखावा, यह छवि, कुछ भी नहीं है,
सच्ची ताकत तो तब है, जब मैं खुद से सच्चा रहूँ, अपनी पहचान से जुड़ा रहूँ।

मेरे मूल्य, मेरी सच्चाई, यही मेरी शक्ति है,
जो दुनिया की नजरों से परे, मेरी आत्मा की गहराई में बसी है।
सच्चा बनो, और अपने भीतर की आवाज़ को सुनो,
दूसरों के संस्करण में बंधकर कभी मत जीयो।

क्योंकि जब तुम खुद से सच्चे रहते हो,
तभी तुम्हारी ताकत, तुम्हारा व्यक्तित्व चमकता है।
जो तुम हो, वही सबसे महान है,
दूसरों की उम्मीदों के सामने खुद को कभी मत छोड़ो।


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