अच्छे कर्म, जैसे चुपचाप गूंजते हैं,
कोई शोर नहीं, बस एक सधा हुआ आह्वान होता है।
इनकी आवाज़ नहीं होती, पर असर गहरा होता है,
जैसे सागर में डाले गए एक छोटे से पत्थर का रेशा लहरों में फैलता है।
जब मैं किसी की मदद करता हूँ, तो यह लम्हे गूंजते नहीं,
फिर भी उनकी गूंज हर दिल में महसूस होती है।
यह अहंकार नहीं, बस एक साधारण सी सच्चाई होती है,
जो बिना शब्दों के भी दिलों तक पहुँच जाती है।
सच्चे अच्छे कर्म बिना दिखावे के होते हैं,
जिन्हें बस किया जाता है, बिना किसी पुरस्कार की आस के।
वो गूंज नहीं सुनाई देती, लेकिन हर ह्रदय में गहरी होती है,
यह एक चुपचाप गूंज है, जो सदियों तक जीवित रहती है।
अच्छे कर्म कभी वक्त की मांग नहीं करते,
वे बस होते हैं, बिना किसी प्रशंसा की चाहत के।
इनकी सच्ची आवाज़ किसी शोर में खोती नहीं,
क्योंकि अच्छे कर्म हमेशा अपनी गूंज छोड़ जाते हैं, चुपचाप, पर स्थायी।
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