वो एक नज़र जिसमें तुम्हारी आत्मा का आईना चटखा,
मैंने देखा—तुम्हारे छाया में छिपा वो अँधेरा जागा।
तुम्हारी मुस्कान के पीछे जो दरारें थीं सदियों की,
उन्हें मैंने पढ़ लिया... एक पल में, बिना शब्दों के व्याकरण।
तुम्हारी चुप्पी में गरजता तूफ़ान मुझे सुनाई दिया,
तुम्हारे हाथों की गर्मी में ज़हर का स्पर्श महसूस हुआ।
वो क्षण—जब तुम्हारी आँखों का सूरज अचानक ढल गया,
मेरी धड़कनों ने तुम्हें नए नक़्शे में बदल दिया।
तुम्हारे शब्दों के फूल अब विषैले काँटे लगते हैं,
तुम्हारी निर्मल नदी में अब स्याह तलछट उगते हैं।
मैंने सोचा था तुम वो हो जो चाँदनी में नहाया हुआ,
पर तुम तो वही हो—जो सूरज के डूबने पर ही जागा हुआ।
तुम्हारे प्यार के नाम पर जो जाल बुना था सालों से,
उसकी हर गाँठ में अब मैंने धोखे की गंध पाई।
तुम्हारी सच्चाई के मुखौटे का एक कोना हिला था,
और अचानक सब कुछ—तुम, मैं, हमारा आसमान ढहा था।
तुम्हारी यादों के बाग़ में अब खिलते हैं जहर के फूल,
तुम्हारे वादों की हवा अब जलाती है, ठंडी नहीं।
वो पल जब तुम्हारी आवाज़ में एक कंपन बेगाना सा था,
मेरी दुनिया का हर रंग उसी काँपते सुर में समा गया।
तुम्हारे चेहरे के हर भाव को अब मैं जासूसी करता हूँ,
हर इशारे की गहराई में छिपा भूकंप तलाशता हूँ।
तुम्हारी मासूमियत का जाल अब पारदर्शी हो गया है,
मैंने देख लिया वो रंग जो तुमने कभी छुपाया था।
क्या तुम जानते हो?
तुम्हारी एक झूठी साँस ने मेरे सितारों को बुझा दिया,
तुम्हारे छूने से अब मेरी त्वचा पर जलन उठती है।
वो क्षण—जब तुम्हारा असली चेहरा मेरी आँखों में अटका,
मैंने अपने ही दिल को एक अजनबी की तरह झटका...
समय ने कहा:
"ये पल तो टूटे हुए शीशे का एक टुकड़ा है,
जिसकी धार पर तुम्हारी निष्ठा के फूल कट गए।
अब तुम्हारी आँखों में जो अँधेरा है वो तुम्हारा नहीं,
वो मेरी पहचान है—जो तुम्हारे प्रतिबिंब में जल गया।"