दोहराव

कभी कभी न जाने क्यूँ वही
दोहराव आते हैं
जहाँ थोड़ी ख़ुशी के लोगों को
मेरे प्रति भाव  आते हैं

जिनसे कुछ न  लेना  देना
उनसे न जाने क्यों तार जुड़ जाते हैं
न दिल से, न दिमाग से
ये रिश्ते बहाव में बन जाते हैं

लोग कहते हैं कुछ नही तेरे मन में 
फिर क्यूँ बात बात पर
हम लोगों की जुबान पर चढ़ जाते हैं
जिस राह से गुजर रहा हूँ मैं
वहां कभी चेहरे  नजर नही आते हैं
फिर क्यूँ भवनाओं के भंवर में बह जाते हैं

दिल तो है ही नही तो फिर
कौन इसे धड़काये ?
हर जगह दिमाग ही नजर आते हैं
समझाओं कैसे, दिखलाओं कैसे
सुनना तो चाहते हैं लोग पर
हम बोल नही पाते हैं
एक ही रास्ता है जिसमे चलकर
हम कुछ भी लिखते जाते हैं |

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