तुम्हें मालूम है, कौन हो तुम



तुम्हें मालूम है, कौन हो तुम,
वो परछाईं जो उजालों से डरती रही हरदम।
जब मैंने खुद को जलाकर राह तुम्हारी बनाई,
तुमने मेरी ही मंज़िल पर धूल उड़ाई।

तुमने अपने चेहरे पर नकाब पहने रखे,
सच के नाम पर झूठ के धागे बुनते रहे।
पर जान लो, समय के आईने में सब साफ़ होगा,
तुम्हारा छल, तुम्हारा डर, तुम्हारा हर धोखा।

तुमने सोचा, मेरे सपने रुक जाएंगे,
तुम्हारे नफ़रत के जाल में उलझ जाएंगे।
पर सुन लो, मेरी आग कभी बुझती नहीं,
सत्य की लौ है ये, जो झुकती नहीं।

तुम्हें मालूम है, कौन हो तुम,
वो नकली साथी, जो सिर्फ़ नाम के संगधारी।
तुम्हारी याद अब मुझे और मजबूत करेगी,
तुम्हारी हर चोट मेरी उचाई को छुएगी।

तो लो, अब जियो अपनी बेईमानी के साथ,
मैं बढ़ चला हूँ अपनी सत्य की राह।
तुम हो सिर्फ़ कहानी, वक्त के किसी पन्ने पर,
और मैं वो सच्चाई, जो हर युग में जिंदा रहे।


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