संघर्ष और निर्माण का मार्ग



जहां संघर्ष होता है, वहीं निर्मल रचनाएँ उभरती हैं,
जहां तपस्या होती है, वहां आत्मा की शक्ति भरती है।
शरीर का श्रम है केवल आरंभ का पथ,
सच्ची विजय तो समझदारी से रची जाती है विधि से।

कष्ट के प्रत्येक क्षण में छिपा है एक रत्न,
जो अनुभव और साहस का निर्माण करता है।
तभी तो कहते हैं संत, हर कठिनाई के बाद,
वही सच्चा निर्माण है जो साहस से लड़ा जाए।

श्रम से केवल शरीर नहीं, आत्मा भी बनती है,
पर जब लक्ष्य केवल तप तक सीमित होता है,
तब व्यवस्थाएँ और योजनाएँ चूक जाती हैं,
और हम उसी कष्ट में उलझ कर रह जाते हैं।

संघर्ष से उभरते हैं अनुभव और मर्म,
पर उनके बिना साधन कैसे पाओगे तुम?
समय की कीमत समझो, सोच में लाओ संतुलन,
तभी जीवन में आएगा सच्चा परिवर्तन।

कार्य की दिशा वही सच्ची होती है,
जो सही साधन और प्रणाली से जुड़ी होती है।
समय का विवेकपूर्ण उपयोग करो,
ताकि श्रम का असल फल साकार हो।

प्रारंभ में तपना आवश्यक है,
पर यह न भूलो कि सही मार्गदर्शन ही जीत है।
श्रम का उद्देश्य केवल मेहनत नहीं,
वह तो एक साधन है, जीवन की ऊँचाई पाने का।

अशांत भागदौड़ के बीच में, ठहरकर सोचो,
कैसे अपने कर्मों को संयम से व्यवस्थित करो।
संगठित कार्य ही लाता है सफलता का रंग,
जहां हर कदम, हर संघर्ष हो एक सटीक सृजन।

याद रखो, श्रम से प्राप्त होता है अनुभव,
पर अनुभव से मिलती है सही दिशा और साधन।
इसलिए श्रम से कभी न भागो,
लेकिन समझदारी से योजनाओं को अपनाओ।

सर्वोत्तम मार्ग वही है,
जो श्रम और योजना दोनों को संतुलित करता है।
कष्ट में छिपा है सच्चा निर्माण,
जो तुम्हें देगा भविष्य का असली मान।


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