रेत पर महल मत बना



रेत पर महल मत बना,
यह धर्म की भूमि नहीं,
जो आंधी में टिक सके,
यह सत्य की गूंज नहीं।

अगर चोट से टूट जाए,
वह विश्वास क्या विश्वास?
जो गाली से बिखर जाए,
वह ईश्वर का है आभास?

तेरा धर्म अगर कमजोर है,
तो दोष किसका होगा?
क्यों वह निष्ठा इतनी कच्ची,
जो धक्का खाकर रो देगा?

तू तो कहता है धर्म अडिग है,
फिर क्यों तू हिलने लगता है?
क्यों शब्दों की चोट से ही,
तेरा विश्वास बहकता है?

सुन, धर्म तो आग है,
जो तपे, तो कुंदन बने।
यह कांच का खिलौना नहीं,
जो गिरते ही टूट जाए।

मेरा धर्म तो मेरा अनुभव है,
कोई चाह कर भी तोड़े कैसे?
यह न किसी ग्रंथ से आया है,
न किसी गुरु की बात से।

मैंने इसे पाया भीतर गहराई,
इसमें चोट लगेगी कहां से?
जो घाव देंगे, वही जलेंगे,
यह तो उठता है आत्मा से।

तू क्यों उधार का बोझ उठाए,
क्यों रेत पर महल बनाए?
क्यों दूसरे के दिए हुए शब्दों से,
अपनी आत्मा को भरमाए?

अगर तेरा धर्म सच्चा है,
तो तू चोट की चिंता न कर।
जो भी आए, उसे आज़मा,
अपने सत्य की शक्ति निहार।

यह झूठा भाव, यह उधार की माला,
तुझे कायर बना रही है।
सत्य की भूमि पर खड़ा हो,
वरना तू हार रही है।

किसी ने तेरे कान भरे,
किसी ने सपने दिखाए।
अब तू रोता है उनकी बातों पर,
यह कैसी भक्ति अपनाए?

सत्य अगर है, तो अमर है,
न इसे शब्द मिटा सकते।
न इसे चोट गिरा सकती,
यह तो समय से आगे बढ़े।

तो छोड़, यह कचरा धर्म,
यह सड़ा हुआ बांस, यह लचर भावना।
खुद को खोज, सत्य को जी,
फिर देख, तेरा धर्म बने दिव्य साधना।

रेत पर महल मत बना,
यह आंधी का खेल नहीं।
अपने भीतर का सत्य खोज,
वह कभी टूटेगा नहीं।


धार्मिक भाव (मैं के स्वरूप में)



मैंने उठाया था एक पत्थर,
खुदा की मूरत गढ़ने को।
मगर उस पत्थर में कंपन आया,
जब किसी ने सवाल उठा दिया।
क्या सच में मेरा ईश्वर पत्थर में बसता है?
या मेरे भीतर के डर ने उसे गढ़ा है?

मैंने किताबें थामी थीं,
धर्म के नियम पढ़ने को।
पर जब किसी ने कहा,
"ये पन्ने तुम्हारे ईश्वर तक नहीं जाते,"
तो मेरी आत्मा कांप उठी।
क्या सच में ये ग्रंथ मेरा आधार हैं?
या बस मेरे खाली मन के सहारे हैं?

मैंने झंडे फहराए थे,
धर्म के नाम पर।
पर जब कोई हवा उन झंडों को उड़ाने आई,
तो मेरी आस्था बिखरने लगी।
क्या ये झंडे मेरे विश्वास के प्रतीक थे?
या मेरे अहंकार की ढाल मात्र?

कोई आया और कहा,
"तेरे धार्मिक भाव झूठे हैं।"
मैंने उसकी आवाज दबाने की कोशिश की,
न्यायालय में फरियाद की।
पर मेरे भीतर से एक सवाल उठा,
क्या मेरा धर्म इतना कमजोर है?
कि किसी शब्द की चुभन से टूट जाए?

धर्म तो होना चाहिए
मजबूत इस्पात जैसा,
जिस पर वार हो, तो वह और चमके।
पर मैंने तो रेत पर महल बनाए थे,
पानी पर लकीरें खींची थीं।
कोई भी आया और उन्हें मिटा गया।
तो दोष किसका था?
उसका, जिसने मिटाया?
या मेरा, जिसने कमजोर नींव रखी?

मैंने खोजा भीतर,
एक ऐसा धर्म,
जो उधार न हो।
जो किसी ग्रंथ, पत्थर,
या झंडे का मोहताज न हो।
जो मेरा हो,
मेरा अपना अनुभव हो।

अब मैं अदालत नहीं जाता,
न किसी से लड़ाई करता।
मैं बस मुस्कुराता हूं,
जब कोई मेरे धर्म पर वार करता है।
क्योंकि मेरा धर्म मेरा सत्य है।
और सत्य को चोट नहीं लगती।
सत्य तो चमकता है,
हर सवाल, हर वार के बाद।

तो आओ, तुम भी सोचो,
क्या तुम्हारा धर्म सच में तुम्हारा है?
या बस उधार की दीवारों पर खड़ा एक महल है?
क्या तुम्हारा विश्वास इतना मजबूत है,
कि कोई भी आए, और उसे हिला न सके?
यदि नहीं, तो खोजो।
खोजो अपने भीतर।
क्योंकि धर्म का सत्य तो
बस तुम्हारी आत्मा में ही छुपा है।


रेत पर महल



रेत पर महल बना रहे हो,
क्यों इतना इतराए जा रहे हो?
धर्म तुम्हारा यदि सच है,
तो धक्के से क्यों हिल जा रहे हो?

लोहे जैसा धर्म चाहिए,
जो चोट से और निखर जाए।
पर तुम तो बांसों के झुरमुट में,
अपना आसरा बनाए जा रहे हो।

उधार का है जो धर्म तुम्हारा,
क्यों उसे अपना माने जा रहे हो?
गुरुमंत्र की बासी बातों पर,
जीवन का महल खड़ा कर रहे हो।

क्यों नहीं खुद अनुभव करते,
सत्य को अपने भीतर धरते?
जो भी चोट तुम्हें लगे,
क्यों नहीं उसे समर्पण से सहते?

अदालत जाओ, फरियाद करो,
कह दो, "मुझे चोट लगी है।"
पर सोचो, क्यों इतनी कमजोर,
तुम्हारी आत्मा सजी है?

धर्म तुम्हारा अनुभव हो,
जो झंझाओं में भी अडिग रहे।
कोई लाख कोशिश कर ले,
पर तुम्हारा विश्वास स्थिर रहे।

रेत पर महल बनाने वाले,
क्यों ना चट्टानों पर काम करो?
सत्य का दीपक जलाओ भीतर,
अंधकार को परे हर बार करो।

किसी का फूंका मंत्र सुना,
और उसे अपना मान लिया।
सत्य की खोज अधूरी छोड़ी,
और झूठ को सत्य मान लिया।

क्यों ना खुद चलो भीतर,
सत्य का रत्न खोजो गहरे?
उधार के कंधों पर चलकर,
क्या मिलेगा सत्य तुम्हें सहरे?

धर्म तो खुद का अनुभव है,
जो कोई छीन ना पाए।
जो चोट से और निखर जाए,
जो समय के साथ गहराए।

तो छोड़ो ये बासी बातें,
जो दूसरों ने कान में डालीं।
अपना सत्य खोजो भीतर,
जहां ना कोई बात फिसलने वाली।

रेत पर महल खड़े हो तुम,
पर जल की बाढ़ आने वाली है।
चट्टानों पर जो टिक गए,
बस वही कहानी कहने वाली है।


रेत पर महल क्यों बनाएं?



मैंने देखा है,
लोग अपने धर्म को ढोते हुए,
जैसे बांस का टूटा टुकड़ा,
जो किसी तेज़ हवा में काँप उठे।
क्यों ऐसा धर्म?
क्यों इतना लचर विश्वास,
जो चोट की हल्की सी भनक से गिर जाए?
क्या यह धर्म है?
या बस उधार के शब्द,
जो बिना जड़ के, हवा में झूलते हैं?

मैंने सुना है,
कोई अदालत में जाकर कहता है,
"मुझे चोट पहुँची है,
मेरे धार्मिक भाव को ठेस लगी है।"
मैं पूछता हूँ,
ऐसा कमजोर भाव तुम रखते क्यों हो?
क्यों नहीं बनाते अपने भीतर
एक धर्म, जो पहाड़ जैसा अडिग हो?
जो आग से भी गुजर जाए,
लेकिन राख न हो।

मेरा धर्म मेरा अनुभव है।
कोई चाहे लाख कोशिश कर ले,
उसे चोट कैसे पहुँचा सकेगा?
पर मैंने उन्हें देखा है,
जो उधार की बातों पर
महल खड़े कर लेते हैं।
रेत पर खींची लकीरों को
स्थायी मान बैठते हैं।
और जब पहली लहर आती है,
तो उनका धर्म, उनका विश्वास,
ढह जाता है।

ओ दुनिया के भ्रमित पथिक!
धर्म को उधार मत लो,
धर्म को खोजो।
अपने भीतर उतरकर,
उस अनुभव को पाओ,
जो किसी धक्के से नहीं हिलता।
उस सत्य को पकड़ो,
जो चोट खाकर और मजबूत होता है।

मैं तो ढूँढता हूँ उस धक्के को,
जो मेरे धर्म को गिरा सके।
मैं पुकारता हूँ उस चोट को,
जो मेरे विश्वास को डिगा सके।
लेकिन मुझे पता है,
कोई ऐसा नहीं कर सकता,
क्योंकि मेरा धर्म मेरा है।
यह किसी गुरुमंत्र का उपदेश नहीं,
यह मेरे अनुभव का सत्य है।

तो क्यों न तुम भी
अपने भीतर खोजो वह शक्ति,
जो किसी भी चुनौती को
मुस्कुराकर स्वीकार कर सके?
क्यों न तुम बनाओ
एक ऐसा धर्म,
जो सिर्फ तुम्हारा हो,
जो चोट खाकर भी
अडिग खड़ा रहे,
जैसे पहाड़,
जैसे वज्र।

क्यों रेत पर महल बनाना?
जब चट्टानों पर इमारतें खड़ी की जा सकती हैं।


The Intricacies of Dream, Ambition, Efforts, and Madness: A Journey into the Psyche



In the labyrinth of the mind, where dreams intertwine with ambition, efforts, and madness, lies the essence of human existence. It is a realm where the boundaries between reality and imagination blur, and where the true depths of creativity emerge. Let us embark on a poetic exploration of this fascinating journey, delving into the psychology behind our dreams and the driving forces that propel us forward.

ख्वाबों की उड़ान, जिद का सफर,
मेहनत की राह, पागलपन की धार।

Dreams, like stars scattered across the night sky, beckon us to reach for the unreachable, to aspire for greatness beyond the confines of our mundane existence. They are the whispers of our soul, urging us to dare, to imagine, to believe in the boundless potential that resides within us.

Ambition, the fiery passion that ignites our spirit, fuels our pursuit of these dreams. It is the driving force that propels us forward, urging us to break free from the shackles of mediocrity and soar to new heights. With ambition as our guiding light, we navigate the tumultuous seas of life, undeterred by the storms that may lie ahead.

अभिलाषा की आग, सपनों का रंग,
हौसले की बारिश, उम्मीदों का संग।

Yet, mere dreams and ambition are not enough to bring our desires to fruition. It is the sweat of our brow, the toil of our labor, the relentless efforts we put forth, that transform our aspirations into reality. Every step we take, every obstacle we overcome, brings us closer to our goals, shaping us into the architects of our destiny.

And in our pursuit of greatness, we may find ourselves teetering on the brink of madness. For it is the madness of visionaries, the madness of those who dare to defy the status quo, that propels humanity forward. It is the willingness to embrace the unconventional, to challenge the norms, that sparks innovation and drives progress.

मेहनत की खुदाई, सपनों की पारी,
जिद की धारा, उम्मीदों की बारी।

In the life, woven with threads of dreams, ambition, efforts, and madness, lies the essence of creativity. It is the ability to see beyond the obvious, to connect the dots in new and unexpected ways, that gives birth to innovation. It is the fusion of imagination and intellect, of passion and perseverance, that transforms dreams into reality.

So let us embrace the complexity of our dreams, the fire of our ambition, the sweat of our efforts, and the madness of our aspirations. For in the depths of our psyche, lies the power to create, to inspire, to shape our destiny, and to illuminate the world with the brilliance of our imagination.

सपनों की दुनिया, अभिलाषाओं का सफर,
मेहनत का फल, पागलपन की बहार।

विचार बीज

मैंने सोचा है, एक छोटा सा बीज,
कैसी क्षमता छुपाए हुए है उसकी भीतर की नींव।
अगर वह जिंदा हो, उसमें प्राणों की धड़कन हो,
वह पूरी पृथ्वी को फूलों से भर सकता है, यही सत्य है, जिसे मैंने जाना।

विचार भी वही बीज है, जो मेरे भीतर बसा है,
अगर वह जीवित हो, उसमें मेरी सांसें, मेरा रक्त बहता है,
तो वह विचार मेरे जीवन को रूप दे सकता है,
और वह रूप इतना सुंदर होगा कि मैं उसे शब्दों में नहीं कह सकता।

जब तक विचार मेरे हृदय से नहीं निकला,
वह सिर्फ एक विचार नहीं, एक भ्रम था,
लेकिन जैसे ही वह मेरे प्राणों से जुड़ा,
वह सच्चाई बन गया, वह मेरा हो गया।

मेरे जीवन का यही उद्देश्य रहा,
तुम्हें हिलाना, झकझोरना, तुम्हें बताना,
कि तुम कब तक दूसरों के विचारों में खोए रहोगे,
कब तक उधार की सोच से अपनी राह तय करोगे।

शर्म आनी चाहिए, जब तक तुम दूसरों के विचारों में जीते हो,
क्या तुमने कभी अपने विचारों की स्वतंत्रता का एहसास किया है?
क्या तुमने कभी सोचा है,
कि तुम कब तक दूसरों के बनाए हुए रास्तों पर चलोगे?

विचार की स्वतंत्रता किसी अधिकार का नाम नहीं है,
यह एक अनुभव है, जिसे तुम्हें खुद खोजना होगा,
यह भ्रांति छोड़ दो कि किसी और से मिले अधिकार से,
तुम अपना सत्य जान सकोगे।

स्वयं से जुड़ो, अपने भीतर की आवाज़ सुनो,
तभी तुम अपने विचारों में स्वतंत्र हो सकोगे,
न लोकतंत्र, न समाज, न किसी व्यवस्था से,
तुम्हें खुद ही अपने विचारों को मुक्त करना होगा।

यह वह संपत्ति है, जो केवल तुम्हारी है,
कोई तुम्हारे लिए इसे नहीं ला सकता,
तुम्हें इसे महसूस करना होगा,
तभी तुम्हारा जीवन सच्ची स्वतंत्रता से भर जाएगा।


मैं सच बोलता हूं

यह बड़ी रहस्यमयी बात है, मैंने सोचा,
भलाई के सहारे बुरे होते हैं लोग, यह सच्चाई है जो खोला।
मैंने देखा, जितना अच्छा करने की कोशिश की,
उतना ही बुराई की ओर बढ़ते गए कदम, ये था मेरा अनुभव, जो मैंने महसूस किया।

कभी कहा, "मैं झूठ बोल रहा हूं,"
और इसका कारण था, किसी का भला करना, यह सोचकर मन से हल्का हुआ।
अगर मैं सच बोलता, तो कोई नुकसान होता,
लेकिन झूठ बोलकर मैंने एक जीवन को बचाया, ऐसा ही मेरा भ्रम था, जो मैंने अपने दिल में लाया।

मैंने सोचा, "अगर मैं किसी को धोखा दे रहा हूं, तो क्या गलत है?"
जब उसका भला करने का कारण हो, तो मुझे क्यों महसूस हो कोई दोष?
क्या सच में यह बुरा है, जब तुम किसी को बचाने के लिए करते हो गलत कार्य?
क्या भलाई के नाम पर बुराई भी सही हो जाती है, या यह बस एक बहाना है, मेरी सोच का विचार?

मैंने कहा, "यह झूठ है, लेकिन यह प्यार के लिए है,"
जब तक उद्देश्य सही है, तब तक मैं क्यों न इसे सही समझूं, यही था मेरा सिद्धांत।
सत्य के मार्ग पर मैंने कदम रखा था, लेकिन कभी देखा नहीं,
कि मेरे झूठ ने और अधिक भ्रम को जन्म दिया, यह बात मैंने आखिरकार समझी।

फिर मैंने सोचा, क्या मैं सच में किसी को बचा रहा हूं,
या अपनी ही मानसिक स्थिति में फंसा हूं, जिससे मैं सच से दूर जा रहा हूं?
क्या भलाई के नाम पर बुराई को बढ़ावा देना सही है?
क्या प्रेम, सत्य और दान के नाम पर बुरा करना मंजूर है?

अंत में मुझे यह एहसास हुआ,
कि जब तक मैं झूठ को सच के लिए बोलता हूं, तब तक मुझे सत्य से दूर जाने का डर नहीं है।
लेकिन क्या सच में यह सही है, जब मेरी नीयत सही हो,
क्या बुराई को अच्छाई के नाम पर करने का तरीका मुझे सही ठहराता है?

आखिरकार, मैं समझा, हर बार जो गलत होता है,
भलाई का सहारा लेने से वह सही नहीं हो जाता, यह एक भ्रम है जो हर दिल में पलता है।
और जब तक हम सच्चाई से समझौता करते रहेंगे,
हमारी भलाई के नाम पर बुराई को बढ़ावा देते रहेंगे।


अपनी क्षमता को व्यर्थ न जाने दो

क्यों रुकूं मैं, जब राहें बुला रही हैं, क्यों थमूं मैं, जब हवाएं गा रही हैं। यह डर, यह संशय, यह झूठा बहाना, इनसे नहीं बनता किसी का जमाना। आध...