सोच को नया रूप दो" – आत्म-सम्मान की ओर कदम



"ना" कहना बुरा नहीं, यह तो ईमानदारी है,
जो तुम चाहते हो, वही कहना सच्चाई है।
तुम्हारी सीमाएं तुम्हारी स्वाभाविकता हैं,
यह कोई अपराध नहीं, यह तुम्हारा हक है।

मतभेद जताना कोई अपमान नहीं,
यह तो तुम्हारे असली रूप को दिखाना है।
दूसरों से अलग राय रखना,
यह तुम्हारी सच्चाई है, इसे न दबाना।

अपनी जरूरतों को पहले रखना कोई स्वार्थ नहीं,
यह खुद से प्यार करने का तरीका है, यह जीवन की सच्चाई है।
कभी अपनी ऊर्जा को बचाना जरूरी होता है,
यह किसी को न दुखाना, बल्कि खुद को सशक्त बनाना होता है।

तुम्हारे "ना" में भी सम्मान है,
तुम्हारे "नहीं" में भी प्यार है।
सीमाएं तुम्हारे अस्तित्व की रक्षा करती हैं,
तुम्हारी खुशी, तुम्हारी शांति को सजग रखती हैं।

जो खुद से प्यार करते हैं, वही दूसरों से सच्चा प्यार कर पाते हैं,
जब तुम खुद को समझोगे, तब ही सच्चे रिश्ते बना पाओगे।
अपने ऊर्जा की रक्षा करना कोई बुरी बात नहीं,
यह तो तुम्हें स्वस्थ और खुशहाल बनाने की शुरुआत है।

अब समय है खुद को अपनाने का,
सोच को नया रूप देने का।
"ना" कहने में भी सौम्यता है,
और खुद से प्यार करने में कोई भी कमी नहीं है।

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