कभी सोचा है—
कैसे लोग नफ़रत में रंगे होते हैं,
कभी किसी को जाना नहीं,
फिर भी दिल में घृणा के बीज बोते हैं।
रंग, धर्म, जाति या लिंग,
क्यों हम इन बंधनों में बंध जाते हैं?
क्या इंसानियत इससे बड़ी नहीं,
क्या प्रेम से प्यारा कुछ और नहीं?
अगर तुम सच में कुछ महसूसना चाहते हो,
तो ज़रा ज़मीन से जुड़कर देखो।
पैदल चलो, या फिर शांति से बैठकर सोचो,
तुम पाएंगे, असली ख़ुशी और सुकून वहीँ है।
ज़रा एक बार खुद को देखो,
क्या हमें ये मतभेद सच में चाहिए?
या हमें सिर्फ प्रेम और समझ की ज़रूरत है,
जो हमें एक साथ जोड़ सके?
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