नैतिकता और आदत



खुद से खुद की लड़ाई में, एक योद्धा मैं हूँ,
आदतों के जाल में फँसा, नैतिकता की राह में खोया हूँ।
हर रोज़ एक नई जंग, अपने भीतर लड़ता हूँ,
मजबूर आदतों से जूझता, नैतिकता की ओर बढ़ता हूँ।

वो फैसले, जो मजबूरी में, आदतों ने थामे हैं,
वो फैसले, जो दिल से किए, नैतिकता ने नामे हैं।
एक तरफ़ वो सिधांत हैं, जो मन को प्यारे हैं,
दूसरी ओर वो आदतें, जो रोज़ के सहारे हैं।

एक पल में नैतिकता की, रोशनी जल उठती है,
दूसरे पल में आदतों की, चुप्पी में मैं खो जाता हूँ।
ये लड़ाई खुद से खुद की, हर रोज़ का हिस्सा है,
कभी जीत नैतिकता की, कभी आदत का किस्सा है।

मन की इस महाभारत में, एक अर्जुन मैं बनूँ,
नैतिकता के धनुष पर, आत्मविश्वास का बाण चुनूँ।
आदतों के विरुद्ध जाऊँ, अपनी राह खुद बनाऊँ,
इस लड़ाई में खुद से खुद को, आखिरकार मैं जीताऊँ।

नैतिकता और आदत

नैतिकता और आदत,
मजबूर आदत से उठाए गए फैसले,
उन फैसलों से हुए युद्ध,
जो खुद से होते हैं,
यह लड़ाई खुद से खुद की है।

जब नैतिकता पुकारती है,
और आदतें जकड़ती हैं,
हर कदम पर, हर मोड़ पर,
मन में उठता द्वंद्व, 
एक संघर्ष निरंतर चलता है।

आदतें जो बरसों से बनी हैं,
जिनमें है आराम, 
जिनमें है सुरक्षा,
वे खींचती हैं पीछे,
रखती हैं बंधन में।

पर नैतिकता की आवाज,
जो आती है भीतर से,
सत्य का मार्ग दिखाती है,
और प्रेरित करती है आगे बढ़ने को।

युद्ध यह सरल नहीं,
हर रोज़, हर पल,
स्वयं से स्वयं की लड़ाई,
जो अदृश्य होती है।

यहाँ कोई तीर नहीं,
ना कोई तलवार,
बस आत्मा की शक्ति,
और मन की दृढ़ता का बल है।

आखिरकार, जीत किसकी होगी,
यह तय करेगा हमारा संकल्प,
नैतिकता की राह पकड़ते हैं,
या आदतों में खो जाते हैं।

क्योंकि यह लड़ाई खुद से खुद की है,
और विजयी वही होगा,
जो अपने मन को जीत सकेगा,
जो नैतिकता के संग चल सकेगा।

नैतिकता और आदत



नैतिकता और आदत का संग्राम,
खुद से खुद की है ये जंग अनाम।

फैसले मजबूरी के, आदतों के आधार,
स्वतंत्रता की पुकार, होती बार-बार।

आदतें मजबूर, जकड़ें हमें बेड़ियों में,
नैतिकता की राह, चमके चाँद-तारों में।

मन में उठती लहरें, विचारों का तूफान,
आदतों से बंधे, नैतिकता का अरमान।

हर कदम पर संघर्ष, हर सोच में द्वंद्व,
खुद से खुद की लड़ाई, अनवरत अनंत।

मजबूर आदतों की जंजीरों को तोड़ो,
नैतिकता की राह पर साहस से चलो।

खुद की जीत में छुपा है जीवन का सार,
आदतों से उबर, नैतिकता का विस्तार।

स्वतंत्रता की गूंज, नैतिकता की बुनियाद,
खुद से खुद की लड़ाई, जीवन की मिसाल।

लड़ाई खुद से खुद की



मन के गहरे सागर में, जब सिधांत का तूफान उठे,
नैतिकता और आदत, द्वंद्व में जब दिल सहे।
मजबूर आदत से उठाए, फैसले हर रोज़,
खुद से होते हैं युद्ध, बिन तलवार के रोज़।

आदत की बेड़ियों में, जकड़ा मन का स्वर्णिम पंछी,
उड़ना चाहे आकाश में, पर ज़मीन से बंधा बिन शांति।
नैतिकता की राह पर, चलना है हर क़दम,
पर आदतें रोकती हैं, हर बार खींच के बंधन।

फैसले जो मजबूरी में, आदतों से बनते हैं,
वो अक्सर मन के आईने में, खुद को ही छलते हैं।
हर फैसले के बाद, आत्मा का युद्ध होता है,
खुद से खुद की ये लड़ाई, निरंतर चलती रहती है।

पर जब मन की आवाज़, नैतिकता को अपनाती है,
आदतों की बेड़ियाँ टूटतीं, आत्मा को राह दिखाती हैं।
खुद से खुद की ये लड़ाई, जीत का संदेश लाती है,
सिधांत की राह पर चलकर, हर मन विजयी बन जाती है।

इस संघर्ष की कहानी, हर दिल की आवाज़ है,
खुद से खुद की लड़ाई, असल में जीवन का अंदाज है।
नैतिकता और आदत, जब एकता में आ जाएं,
तभी सच्चा शांति और सुख, मन को मिल पाए।

लड़ाई खुद से खुद की


सिद्धांत या नैतिकता, दोनों का सवाल,
मजबूर आदतें उठाती हैं बवाल।
फैसले जो उठते मजबूरियों से,
युद्ध करते हैं वे, दिल की गलियों से।

आदतें जो जकड़ी हैं मजबूती से,
लड़ाई में उलझती, अपनी ही धुन से।
नैतिकता का सवाल जब आता सामने,
मन में बवंडर, चुपचाप गहराने।

खुद से खुद की यह लड़ाई निरंतर,
सत्य और आदतें, करते आमना-सामना अक्सर।
मन के भीतर चलती यह जंग भयानक,
सिद्धांतों की आवाज़, आदतों का संघर्ष।

फैसले जो किए मजबूरी में कभी,
लड़ते रहते दिल में, रात दिन सभी।
जीत किसी की नहीं, बस संघर्ष है जारी,
खुद से खुद की यह लड़ाई, कभी न होती पराई।

मन की यह लड़ाई, चलती सतत,
सिद्धांतों के साथ, आदतें भी जटिल।
खुद को जानना, यही असली जीत है,
इस लड़ाई में जो खुद से खुद की है।

खुद से खुद की लड़ाई



सिधांत और नैतिकता की राह पर चलना,  
आदतें मजबूर करती हैं हमें बदलना।  
एक ओर नैतिकता का पावन प्रकाश,  
दूसरी ओर आदतें, जो करती हैं नाश।

मजबूर आदत से उठाए गए फैसले,  
खुद से ही होते युद्ध के मसले।  
नैतिकता की पुकार, मन का है द्वंद,  
खुद से ही खुद की लड़ाई का छंद।

हर कदम पर संघर्ष का ये रण,  
आदतें कहतीं, "चलो उसी पुराने पथ पर।"  
नैतिकता कहती, "बनो सही, उठो साहस से,  
जीवन में लाओ नए उजालों का स्वर।"

जब खुद से खुद की ये लड़ाई लड़नी हो,  
मजबूत सिधांतों का साथ चुनना हो।  
आदतों की बेड़ियों को तोड़ो और उड़ो,  
नैतिकता की ऊंचाइयों पर खुद को खोजो।

यही है जीवन का असली सार,  
खुद से खुद की लड़ाई का अद्वितीय उद्गार।  
सिधांत और नैतिकता की राह पर चलो,  
हर संघर्ष में विजय का अनुभव पाओ।

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