नैतिकता और आदत

नैतिकता और आदत,
मजबूर आदत से उठाए गए फैसले,
उन फैसलों से हुए युद्ध,
जो खुद से होते हैं,
यह लड़ाई खुद से खुद की है।

जब नैतिकता पुकारती है,
और आदतें जकड़ती हैं,
हर कदम पर, हर मोड़ पर,
मन में उठता द्वंद्व, 
एक संघर्ष निरंतर चलता है।

आदतें जो बरसों से बनी हैं,
जिनमें है आराम, 
जिनमें है सुरक्षा,
वे खींचती हैं पीछे,
रखती हैं बंधन में।

पर नैतिकता की आवाज,
जो आती है भीतर से,
सत्य का मार्ग दिखाती है,
और प्रेरित करती है आगे बढ़ने को।

युद्ध यह सरल नहीं,
हर रोज़, हर पल,
स्वयं से स्वयं की लड़ाई,
जो अदृश्य होती है।

यहाँ कोई तीर नहीं,
ना कोई तलवार,
बस आत्मा की शक्ति,
और मन की दृढ़ता का बल है।

आखिरकार, जीत किसकी होगी,
यह तय करेगा हमारा संकल्प,
नैतिकता की राह पकड़ते हैं,
या आदतों में खो जाते हैं।

क्योंकि यह लड़ाई खुद से खुद की है,
और विजयी वही होगा,
जो अपने मन को जीत सकेगा,
जो नैतिकता के संग चल सकेगा।

No comments:

Post a Comment

Thanks

आधी-अधूरी आरज़ू

मैं दिखती हूँ, तू देखता है, तेरी प्यास ही मेरे श्रृंगार की राह बनती है। मैं संवरती हूँ, तू तड़पता है, तेरी तृष्णा ही मेरी पहचान गढ़ती है। मै...