खुद से खुद की लड़ाई में, एक योद्धा मैं हूँ,
आदतों के जाल में फँसा, नैतिकता की राह में खोया हूँ।
हर रोज़ एक नई जंग, अपने भीतर लड़ता हूँ,
मजबूर आदतों से जूझता, नैतिकता की ओर बढ़ता हूँ।
वो फैसले, जो मजबूरी में, आदतों ने थामे हैं,
वो फैसले, जो दिल से किए, नैतिकता ने नामे हैं।
एक तरफ़ वो सिधांत हैं, जो मन को प्यारे हैं,
दूसरी ओर वो आदतें, जो रोज़ के सहारे हैं।
एक पल में नैतिकता की, रोशनी जल उठती है,
दूसरे पल में आदतों की, चुप्पी में मैं खो जाता हूँ।
ये लड़ाई खुद से खुद की, हर रोज़ का हिस्सा है,
कभी जीत नैतिकता की, कभी आदत का किस्सा है।
मन की इस महाभारत में, एक अर्जुन मैं बनूँ,
नैतिकता के धनुष पर, आत्मविश्वास का बाण चुनूँ।
आदतों के विरुद्ध जाऊँ, अपनी राह खुद बनाऊँ,
इस लड़ाई में खुद से खुद को, आखिरकार मैं जीताऊँ।
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