ब्रह्माण्ड के विस्तार का रहस्य: यह किसमें फैल रहा है?


जब हम कहते हैं कि ब्रह्माण्ड (Universe) का विस्तार हो रहा है, तो यह सवाल स्वाभाविक रूप से उठता है: यह विस्तार किसमें हो रहा है? भौतिक विज्ञान और खगोलशास्त्र में, यह चर्चा एक गूढ़ समस्या के रूप में सामने आती है। आइए इसे समझने का प्रयास करें।

ब्रह्माण्ड का विस्तार:

बिग बैंग सिद्धांत के अनुसार, ब्रह्माण्ड लगभग 13.8 अरब वर्ष पूर्व एक अत्यंत घनीभूत और उष्ण अवस्था से उत्पन्न हुआ था। तब से, यह निरंतर फैल रहा है। लेकिन, जब हम "फैलना" शब्द का प्रयोग करते हैं, तो यह मान लेते हैं कि कोई चीज़ कहीं "अंदर" या "बाहर" फैल रही है।

"किसमें" फैल रहा है ब्रह्माण्ड?

स्थान का सवाल:
यदि ब्रह्माण्ड की परिभाषा में ही संपूर्ण स्थान और समय समाहित हैं, तो इसका मतलब यह हुआ कि यह किसी अन्य स्थान में फैल नहीं सकता। लेकिन हमारा मस्तिष्क इसे स्थानिक (spatial) रूप में समझने की कोशिश करता है।

"ग़ैर-स्थान" का विचार:
यदि ब्रह्माण्ड का विस्तार किसी और स्थान में नहीं हो रहा, तो यह गैर-स्थान (non-space) में हो रहा होगा। लेकिन गैर-स्थान क्या है?
यह एक ऐसा रहस्य है, जिसे आधुनिक विज्ञान समझाने में असमर्थ है। वेदांत के अनुसार, इसे "अव्यक्त" (Unmanifested) या "अधिष्ठान" के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।

वेदांत और विज्ञान का दृष्टिकोण:

वेदों और उपनिषदों में "ब्रह्म" को संपूर्ण अस्तित्व का स्रोत कहा गया है। मुण्डक उपनिषद में कहा गया है:
"एकोऽहम् बहुस्याम"
(मैं एक हूँ, मैं ही अनेक रूप धारण करूँ।)
इससे यह संकेत मिलता है कि ब्रह्माण्ड का विस्तार ब्रह्म के अदृश्य और असीम स्वरूप में हो रहा है।

अंतरिक्ष, समय और चेतना का संबंध:

विज्ञान में, समय और स्थान को सापेक्ष माना जाता है, लेकिन वेदांत इसे "माया" या ब्रह्म की अभिव्यक्ति मानता है। भगवद गीता में कहा गया है:
"अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थितः।"
(हे अर्जुन! मैं प्रत्येक जीव के भीतर और बाहर व्याप्त हूँ।)
यह श्लोक बताता है कि विस्तार किसी बाहरी स्थान में नहीं, बल्कि चेतना में होता है।

क्या यह "गूढ़" समस्या हल हो सकती है?

विज्ञान की सीमाएँ हैं, क्योंकि यह केवल मापने योग्य चीजों पर निर्भर है। लेकिन आध्यात्मिक दृष्टिकोण से यह माना जाता है कि ब्रह्माण्ड का विस्तार उस अनंत में हो रहा है जो हमारी इंद्रियों और समझ से परे है।

निष्कर्ष:

ब्रह्माण्ड का विस्तार किसमें हो रहा है, यह प्रश्न हमारे समझ के दायरे से परे है। विज्ञान इसे "डार्क मैटर" और "डार्क एनर्जी" के माध्यम से समझाने की कोशिश करता है, जबकि वेदांत इसे ब्रह्म की अभिव्यक्ति मानता है।
आधुनिक विज्ञान और प्राचीन ज्ञान के बीच यह संवाद न केवल हमें ब्रह्माण्ड के रहस्यों को समझने की प्रेरणा देता है, बल्कि हमें हमारी सीमाओं का भी अहसास कराता है।

"योऽविभक्तं च भूतेषु विभक्तमिव च स्थितम्।
भूतभर्तृ च तज्ज्ञेयं ग्रसिष्णु प्रभविष्णु च।"
(भगवद गीता 13.16)
(जो अविभाज्य होकर भी विभाजित सा प्रतीत होता है, वही ब्रह्माण्ड का आधार है।)

यह शाश्वत सत्य हमें बताता है कि ब्रह्माण्ड के विस्तार का रहस्य, ब्रह्म के अनंत स्वरूप में निहित है।


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