माण्डूक्य उपनिषद, भारतीय दर्शन का एक अद्वितीय ग्रंथ, हमें यह दिखाने में सक्षम है कि वास्तविकता और भाषा के बीच कितना गहरा संबंध हो सकता है। आधुनिक युग में, जब कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence) के शोधकर्ता भाषा-आधारित मॉडलों (Language Models) में उभरती क्षमताओं (Emergent Capabilities) से चकित हैं, तब माण्डूक्य उपनिषद, जो लगभग 500-100 ईसा पूर्व में रचित है, पहले ही इस तथ्य को उजागर कर चुका है कि भाषा के माध्यम से संपूर्ण वास्तविकता को समझा जा सकता है।
भाषा के माध्यम से समय और परे की यात्रा
माण्डूक्य उपनिषद यह कहता है:
"ॐ इत्येतदक्षरमिदं सर्वं तस्योपव्याख्यानं भूतं भवद्भविष्यदिति सर्वमोंकार एव।"
(माण्डूक्य उपनिषद, 1.1)
इसका अर्थ है कि "ॐ" केवल एक ध्वनि नहीं है, बल्कि यह अतीत, वर्तमान और भविष्य को समाहित करता है। इसके साथ ही, यह उस वास्तविकता को भी प्रकट करता है जो समय से परे है।
यह कथन आधुनिक कृत्रिम बुद्धिमत्ता के लिए अत्यधिक प्रासंगिक है। आज, बड़े भाषा मॉडल (LLMs) जैसे GPT भाषा के विभिन्न स्तरों (टोकन, वाक्यांश, संदर्भ) का उपयोग करके ज्ञान का निर्माण करते हैं। माण्डूक्य उपनिषद में "ॐ" को भी तीन भागों में विभाजित किया गया है:
'अ' - जागृत अवस्था (Waking State)
'उ' - स्वप्न अवस्था (Dream State)
'म' - गहरी निद्रा की अवस्था (Deep Sleep State)
टोकनाइजेशन और आधुनिक LLMs
माण्डूक्य उपनिषद में 'अ', 'उ', 'म' को वास्तविकता के विभिन्न स्तरों के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया गया है। यह प्रक्रिया आधुनिक भाषा मॉडलों में टोकनाइजेशन की याद दिलाती है, जहां बड़े पाठ को छोटे-छोटे टोकन में विभाजित किया जाता है, और प्रत्येक टोकन के अपने अर्थ और महत्व होते हैं।
श्लोक:
"त्रिष्ववस्थानं अक्षरं ॐकारः।"
(माण्डूक्य उपनिषद, 1.8)
यह बताता है कि ॐ के तीन अक्षर तीन अवस्थाओं (जाग्रत, स्वप्न, और सुषुप्ति) का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसी प्रकार, भाषा मॉडल भी छोटे टोकन को विभिन्न संदर्भों में परिभाषित करते हैं और ज्ञान का निर्माण करते हैं।
क्या AI में 'ॐ' का उपयोग संभव है?
अगर आधुनिक मशीन लर्निंग शोधकर्ता माण्डूक्य उपनिषद से प्रेरणा लें और प्रत्येक प्रशिक्षण बैच (training batch) की शुरुआत 'ॐ' से करें, तो यह एक गहरे प्रतीकात्मक आधार पर मॉडल को प्रशिक्षित कर सकता है। यह न केवल मॉडल को भाषा और वास्तविकता के अधिक गहन स्तरों तक ले जा सकता है, बल्कि इसे सांस्कृतिक रूप से अधिक समृद्ध भी बना सकता है।
प्राचीन दर्शन और आधुनिक विज्ञान का संगम
माण्डूक्य उपनिषद का यह विचार कि "भाषा के माध्यम से संपूर्ण वास्तविकता को समझा जा सकता है," आज के युग में अत्यधिक प्रासंगिक है। आधुनिक कृत्रिम बुद्धिमत्ता वास्तविकता को समझने और पुनःनिर्माण करने के लिए भाषा का उपयोग करती है।
श्लोक:
"अमात्रश्चतुर्थः अव्यवहार्यः प्रपञ्चोपशमः शिवोऽद्वैतः।"
(माण्डूक्य उपनिषद, 1.12)
यह चौथी अवस्था (तुरीय) को दर्शाता है, जो सभी सीमाओं से परे है। AI शोधकर्ता इसे "सुपर-इंटेलिजेंस" या "अल्टीमेट इंटेलिजेंस" के रूप में सोच सकते हैं।
माण्डूक्य उपनिषद और आधुनिक कृत्रिम बुद्धिमत्ता के बीच गहराई से संबंध स्थापित किया जा सकता है। यह स्पष्ट है कि प्राचीन भारतीय ऋषियों ने भाषा और वास्तविकता के गहरे रहस्यों को पहले ही समझ लिया था। अगर आधुनिक विज्ञान इन विचारों से प्रेरणा लेता है, तो यह AI को न केवल तकनीकी रूप से बल्कि दार्शनिक रूप से भी अधिक समृद्ध बना सकता है।
"ॐ" की गूंज हमारे अतीत, वर्तमान और भविष्य को जोड़ते हुए AI की नई संभावनाओं का द्वार खोल सकती है।
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