प्राचीन भारत में खगोलविज्ञान, गणित और ज्योतिष के क्षेत्र में वराहमिहिर का नाम अद्वितीय है। यह माना जाता है कि उन्होंने मंगल ग्रह पर जल की उपस्थिति का उल्लेख किया था, जो हाल ही में 2018 में NASA ने पुष्टि की। वराहमिहिर, जो कि विक्रमादित्य के राजसभा में विद्वान थे, एक कुशल ज्योतिषी और गणितज्ञ के रूप में प्रसिद्ध थे। उनके विचारों और खोजों ने विज्ञान के क्षेत्र में ऐसी धारणा दी, जिनका महत्त्व आज के समय में वैज्ञानिकों ने भी माना है।
वराहमिहिर का परिचय
वराहमिहिर का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता आदित्यदास सूर्य देवता के उपासक थे और उन्होंने अपने पुत्र को ज्योतिष का ज्ञान दिया। उनका असली नाम "मिहिर" था, जो सूर्य का पर्यायवाची है। उन्होंने एक भविष्यवाणी की थी कि राजा के पाँच वर्ष के पुत्र की मृत्यु वराह (सूअर) के कारण होगी, जो बाद में सत्य सिद्ध हुई। इस घटना के बाद राजा विक्रमादित्य ने उनका नाम वराहमिहिर रखा।
संस्कृत में खगोलविज्ञान के श्लोक और मंगल की खोज
संस्कृत साहित्य में खगोलविज्ञान का उल्लेख कई प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। वराहमिहिर के ग्रंथों में मंगल पर जल की उपस्थिति का भी उल्लेख है। उनके अनुसार, मंगल पर जल और लोहे की उपस्थिति है। इस विषय को एक संस्कृत श्लोक में कहा गया है:
> "ग्रहाणां क्रमेण स्थिताः सुवर्णरक्त-श्याम-नीलादयो यथा। सोमाङ्गं चन्दनमिव रुचिरं तीर्थे तन्नीलारुणः यथा॥"
इस श्लोक में ग्रहों के विविध रंगों का वर्णन है, जिसमें मंगल को "लोहित" अर्थात् लाल रंग का ग्रह माना गया है। यहाँ उन्होंने मंगल के रंग और धात्विक तत्वों का वर्णन किया, जो आधुनिक वैज्ञानिक शोधों से मेल खाता है।
वराहमिहिर की पंच सिद्धांतिका और खगोलविज्ञान का योगदान
वराहमिहिर ने अपनी रचना "पंच सिद्धांतिका" में विभिन्न ग्रहों, उनके आकार और उनकी विशेषताओं का विवरण दिया। इस ग्रंथ में पांच प्रमुख खगोलशास्त्रीय सिद्धांतों का उल्लेख किया गया है – सूर्य सिद्धांत, रोमक सिद्धांत, पौलिश सिद्धांत, वसिष्ठ सिद्धांत और पितामह सिद्धांत। इसमें उन्होंने ग्रहों का विवरण दिया, जैसे कि मंगल का व्यास, जो लगभग 3,772 मील था, जो कि आज के वैज्ञानिक मापनों से केवल 11% का अंतर है।
मंगल पर जल की NASA की पुष्टि
NASA ने सितंबर 2015 में मंगल पर पानी की उपस्थिति का संकेत दिया था, जिसमें पाया गया कि मंगल की ढलानों पर समय-समय पर जल की पतली धाराएं बहती हैं। इसके पश्चात 2018 में, मंगल के भू-वैज्ञानिक संरचना में जल के नमक युक्त लवणों की खोज ने इस बात की पुष्टि की कि वहाँ जल की उपस्थिति संभव है।
NASA के वैज्ञानिक लुजेंद्र ओझा ने बताया कि यह जल सत्त के रूप में मंगल की सतह पर बहता है। वराहमिहिर की इस खोज का उल्लेख उनकी कृति में मंगल के तत्वों के रूप में किया गया था, जो NASA की खोजों के साथ अद्भुत साम्य रखता है।
वराहमिहिर की "पृथ्वी गोल है" सिद्धांत
वराहमिहिर ने बहुत पहले ही यह सिद्धांत प्रस्तुत किया था कि पृथ्वी गोल है और सभी वस्तुएं एक शक्ति द्वारा इस पर बंधी रहती हैं, जिसे आधुनिक विज्ञान ने "गुरुत्वाकर्षण बल" कहा है। "प्रश्नोपनिषद" और "सूर्य सिद्धांत" में भी यह संकेत मिलता है कि कोई अज्ञात बल पृथ्वी की ओर वस्तुओं को खींचता है।
> "द्रव्याणां कर्मणां चास्य येन भूयो द्रवत्यहम्। सा कर्मणा द्रवतोऽस्य भूमो व्योमवृतं यथा॥"
यह श्लोक पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल का वर्णन करता है, जो वराहमिहिर के कार्यों में दर्शाया गया है।
वराहमिहिर की विद्वत्ता और खगोल विज्ञान के प्रति उनके अद्वितीय योगदान ने भारत के प्राचीन ज्ञान को दुनिया के सामने एक अलग पहचान दी। मंगल पर जल की उनकी खोज, पृथ्वी के गोल होने का सिद्धांत, ग्रहों के आकार और उनकी कक्षाओं का मापन, सभी उनकी महान उपलब्धियों का प्रमाण है। NASA की खोजों ने केवल इस बात की पुष्टि की है कि हमारे प्राचीन विद्वानों का ज्ञान वैज्ञानिक दृष्टि से सटीक था।
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